योग से व्यापार
स्वामी श्यामानंद का नाम समाज में एक पहुंचे हुए योगी के रूप में प्रसिद्ध था । लोगों के अंदर एक आम धारणा थी कि जो रोग बड़े बड़े डाक्टर ठीक नही कर पाते हैं, उसे स्वामी जी अपने योग विद्या के द्वारा रोगियों को या तो योग करवाकर या फिर अपने वहां निर्मित दवाइयों से ठीक कर देते हैं। पता नही इन बातों में कितनी सत्यता थी यह एक शोध का विषय हो सकता है, किंतु आम जन में यही धारणायें बनी हुई थी कि बाबा एक से एक जटिल रोगों का इलाज बहुत ही आसानी से कर देते हैं।इस धारणा ने समाज में एक ऐसा स्थान बना लिया था कि बाबा के योग कार्यक्रमों में हजारों की भीड़ होने लगी इसके लिए समाज का अमीर तबका, बाबा के नजदीक पंक्तियों में बैठने का स्थान पाने के लिए ज्यादा से ज्यादा शुल्क चुका कर अपने जटिल रोगों से छुटकारा पा लेना चाहता था। शायद लोगों को यह पता ही नहीं कि रोग के कारण उनकी सोच, उनकी जीवन शैली, उनका आचार विचार व्यवहार और कुछ कुछ बाहरी परिस्थितियों व कुछ प्रारबद्ध तो कुछ तो कुछ मनुष्य के दुर्भाग्य की उपज हैं। लेकिन इस व्यवसायिक जगत में कौन अपने सोच, जीवन शैली, आचार विचार व व्यवहार पर ध्यान दें, व्यक्ति यदि अपना आचार विचार व अपने व्यवहार को ही सही कर ले अपने जीवन में अधिकतर समस्याओं को आने ही नही देगा ।
बात जो कुछ भी हो किन्तु समाज में इस बात ने इतनी गहराई से स्थान बना लिया था कि बाबा एक से एक जटिल रोगों को अपने योग विद्या के द्वारा नही तो अपने दवाइयों से ठीक कर देंगे। इस सोच ने बाबा को कमाई का एक ऐसा अवसर प्रदान किया की बाबा की कमाई दिन दूनी व रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी।बाबा की इस कमाई में उनका अथक प्रयास, परिश्रम, वाक्य पटुता व समझदारी का अद्भुत मेल था। बाबा जगह जगह , बड़े शहर से लेकर छोटे शहरों में योग कार्यक्रमों को आयोजित करते, इन योग कार्यक्रमों में इतनी भीड़ होती की मानो एक नए तरह के मेले का दर्शन होता था। कुछ रोगी थे जो रोगों के छुटकारे के आशा में तो कुछ भविष्य में कोई रोग न हो इस आशा में योग कार्यक्रमों में शामिल होते थे। इन योग कार्यक्रमों की सफलता और बाबा की दवाइयों का अद्भुत प्रभाव को सुनकर कुछ उद्यमी व्यक्तियों को बाबा के साथ व्यापार का अवसर नजर आ रहा था। वो सोचते थे कि बाबा का ब्राण्ड नाम उनको और पैसा बनाने का अवसर प्रदान कर सकता है । वो बाबा के साथ मिलकर बड़ी से बड़ी कंपनियों की स्थापना करना चाहते थे। इस निमित वो बाबा को अपने बड़े बड़े कारखानों मे घुमाते थे और उसमें लगे मशीनों की विशेषता बताते थे। कोई उद्यमी बाबा को अपने कारखाने में घुमाने के लिए ले जाता तो वह अपने मशीनों के कार्य करने की क्षमताओं व इसके द्वारा किए जा रहे कार्यों को इतना विस्तृत से वर्णन करता था कि बाबा भी अचंभित से हो जाते व आश्चर्य प्रकट करते हुए ऐसा प्रदर्शित करते थे कि जैसे उन्होंने ऐसा पहली बार देखा हो। पता नही उनके इस प्रकार आश्चर्य प्रदर्शन आपके पीछे कितनी सच्चाई थी यह तो वही जाने किंतु ऐसा लगता था कि यह एक प्रकार से उन उद्यमियों को आमंत्रण था की आप और ज्यादा से ज्यादा अपने कारखानो में मशीनरी द्वारा तैयार किए जा रहे वस्तुओं के बारे में बताएं। बाबा की मनसा को भांप कर उद्यमी और एक से एक गूढ़ रहस्यों को बताते तथा होने वाले फायदों को गिनाकर बाबा को अपने साथ लेकर नए नए कारखानों का सपना अपने मन में संजोए जाते थे। किन्तु किसी के मन में क्या बात चल रहा है इसको जानना तो इतना आसान काम नहीं है। शायद हम सभी लोग कभी एक दूसरे की शत प्रतिशत मन की बातों को पढ़ लेते या जान जाते तो इस पूरी दुनिया के लोगों के व्यवहार का स्वरूप क्या होता इसको बता पाना इतना आसान काम नही है।,
बाबा को अपने योग कार्यक्रमों करते हुए महीने में एक से दो बार नए - नए कारखानों में घूमना उनके बारीकियों को समझने के सुअवसर मिल जाया करता था। इस तरह से भिन्न - भिन्न कारखानों में घूमना, मशीनों की कार्य करने की बारीकी को समझना, कार्य की उत्पादकता में बढ़ावा देने व वस्तुओं लागत में कम करने वाले तरीकों को समझना तथा उन मशीनों से होने वाले फायदो को देखने व अध्ययन करने का अवसर बाबा को बार बार मिल रहा था। बाबा के पास छोटा मोटा आयुर्वेदिक दावा बनाने का कारखाना था। यह कारखाना कुल ले देकर एक घरेलू उद्योग के रूप मे था, जिसमे कुल ले देकर रूढ़िगत तरीकों का ही आयुर्वेदिक दवा व छोटे मोटे घरेलू सामानों को बनाने में प्रयोग होता था। जो शायद ही बाजार में मांग की पूर्ति नहीं कर पा रही थी व बड़े-बड़े कंपनियों की तरह पैकिंग तथा प्रस्तुतीकरण भी नहीं कर पा रही थी।
देश के बड़े-बड़े उद्योगपति जो बाबा को अपने कारखाने में घूमाने ले जाते थे वह लोग बाबा से कई बार साथ में व्यापार करने की मनसा प्रकट कर चुके थे और बाबा के ब्रांड नाम का फायदा उठाना चाहते थे किंतु बाबा के मन में कुछ और ही चल रहा था। बाबा के पास अब नाम के साथ पैसा भी पर्याप्त था तथा एक सामान्य बुद्धि जो एक प्रबंधक के पास होनी चाहिए उससे बाबा भरपूर थे। प्रबंधक का काम ही क्या है सही काम के लिए सही आदमी का चुनाव करना कार्य पर लगाना, सही समय पर सही निर्णय को लेना, बाजार के उतराव चढ़ा पर ध्यान देना, बाजार में हो रहे परिवर्तनों पर ध्यान देना, जनता के मूड और रुचियों पर ध्यान देना, और जो सबसे जरूरी गुड़ होना चाहिए वह था साहस इसका बाबा के पास अथाह भंडार था।
बाबा को विभिन्न कम्पनियों में घूमने व उनके प्रबंधकों व मालिकों से मिलने के कारण एक बृहद अनुभव का भंडार था ही ,उन्होंने इन अनुभवों और अपने साहस के बल पर एक बड़ी कम्पनी स्थापित करने का फैसला किया। कुछ ही महीने में कम्पनी बनकर तैयार हो गई उसमे उत्पादन शुरू हो गया जो लोग अभी तक बाबा के साथ मिलकर कम्पनी खोलना चाहते थे व साथ साथ ब्यापार करना चाहते थे अब बाजार में बाबा उनके प्रतिद्वंदी थे। अब बाबा का व्यापार दिन दूना रात चौगुना प्रगति पर था, उनके प्रतिद्वंदि जो पहले बाबा को अपने कारखाने व मशीनों की बारीकियों को बताने में अपना बड़प्पन दिखाने का प्रयास करते थे और बाबा के साथ व्यापार की आशा करते थे, अपने हाथों को मल रहे थे और एक जबरदस्त प्रतिद्वंदिता के साथ अपना अस्तित्व बचाने का प्रयास का रहे थे।
गोविंद प्रसाद कुशवाहा
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