Tuesday, June 17, 2008

इकनामी ड्राइव

इकनामी ड्राइव में बोर्ड से पुरस्कार पा चुके डिप्टी साहब अपने अधिनस्त कर्मचारियों के यात्रा भत्ता, ओवर टाइम तथा रात्रि भत्ता इत्यादि पर बहुत ही कड़ी नज़र रखते थे| वे अपने कार्यालय के बड़े बाबू तथा सुपरवाइज़र स्टाफ को बार - बार हिदायत दिया करते थे| कि आप लोग इस बात पर हमेशा ध्यान रखे कि कोई आदमी अनावश्यक रूप से बार-बार यात्रा-भत्ते पर तो नहीं जा रहा है| जितना भी सम्भव हो आदमियों से काम न कराया जाए| और रात्रि के समय आदमियों को यदि काम पर लगाना पड़ता है| तो प्रयास किया जाए कि कम से कम आदमियों कि ड्यूटी लगाई जाए, जिससे सरकार के पैसे कि बचत कि जा सके| बचत के इस तरीके से वे अपनी नज़रों में देश भक्त थे| तो कर्मचारियों की नज़रों में उनके मुंह का निवाला छिनने वाले थे| इस तरह से कार्य करते हुए समय बीतता रहा| ऐसे में एक दिन उन्होंने बड़े बाबू को बुलाकर बोला कि बोर्ड कि मीटिंग वाली फाइल लेकर आईये| उसे लेकर मुझे बोर्ड कि मीटिंग में दिल्ली जाना है| बड़े बाबू, साहब अभी आप पिछले ही हफ्ते तो बोर्ड मीटिंग में गए थे| और काम भी हो गया था| नहीं अभी काम पूरा नहीं हुआ है| और हाँ, सुनिए मेरे साथ राम खिलावन की भी ड्यूटी बुक कर दीजिये| साहब दिल्ली से लौटकर आकर ऑफिस में बैठे तो, बड़े बाबू ने राम खिलावन से पुछा, साहब मीटिंग से लौट आये| राम खिलावन, हाँ साहब बार - बार मीटिंग में क्या जाते हैं| राम खिलावन, अरे बड़े बाबू छोडिये इन बातों को ये सुबह की बाते हैं| यात्रा भत्ता, ओवरटाइम भत्ता तथा रात्रि भत्ता पर रोक हम सब छोटे कर्मचारियों के लिए है, साहब लोगो के लिए नहीं है| आप जान रहे हैं कि पिछले कई बार से साहब बोर्ड कि मीटिंग में जाते हैं, आप किसी से कुछ बोलियेगा नहीं, मैं आप को सच्ची बात बता रहा हूँ| साहब अपने निम्मी बिटिया के शादी के वास्ते दिल्ली दोड़ लगा रहे हैं| मीटिंग तो एक बहाना है| इकनामी ड्राइव हम छोटे कर्मचारियों के लिए हैं, साहब सुबहा के लिए नहीं है|