Friday, December 14, 2007

रंगे सियार

रंगे सियार
दहेज़ उन्मूलन सभा के अध्यक्ष राघो बाबू दहेज़ के विरोध में आयोजित कार्यक्रम मे सभा को संबोधित करते हुए बोल रहे थे कि इस दहेज़ ने ही लड़कियों के माँ-बाप को अनिती से, ग़लत तरीके से पैसा कमाने के लिये मजबूर कर रखा है| आइये हम सभी लोग इन दहेज़ लेने वालो का सामाजिक बहिष्कार करें तथा उनके वहाँ न कोई लड़की न दे और न ही अपने लड़कों की सदी उनके वहाँ करें तथा अपने लड़कों के शादी - विवाह  में भी  दहेज़ न लेने का संकल्प करे | यह सुनकर सभा मे उपस्थित एक सज्जन दूसरे दिन अपनी लड़की का रिश्ता लेकर राघो बाबु के लड़के से ठीक करने उनके घर पर पहुँचे | बात करने तथा  घर परिवार के लोगों को लड़की का फोटो पसंद आने  के बाद राघो बाबू ने कहा की आप तो जानते ही हैं  कि मैं दहेज़ का सख्त बिरोधी हूँ | आपको जो देना होगा आप अपनी लड़की को दे दिजियेगा और गहने बनवाते समय इस बात का ध्यान रखियेगा की वो बीस -पच्चीस  भर सोने मे ही तैयार हो जाए | ज्यादा फिजूलखर्ची की आवश्यकता नही है | यह सुनकर वह सज्जन बिल्कुल हक्के-बक्के से हो गए और सोचने लगे की जब ऐसे रंगे सियार ही दहेज़ उन्मूलन  सभा के अध्यक्ष है, तो समाज मे दहेज़ घटेगा नही बढेगा ही | 

Sunday, November 25, 2007

आशीष बचन

आशीष बचन

भिक्षाटन कर उदर पोषण करने वाली दो बृद्ध औरते एक कालोनी में घुस कर दो बिपरीत दिशाओं में चल दी | एक औरत ईश्वर के नाम पर भीक्षा मांगती थी तथा तमाम आशीष बचन देती थी | भगवान् आप का भला करें,दूध नहाओ, पूतों  फलो आदि-आदि | यह सुनकर एक आध घर से भिक्षा  मील जाती थी | जबकि दूसरी औरत जब भी किसी के घर जाती तों बीना कुछ आशीष बचन बोले तेज आवाज से बोलती थी कि बाबु बुढ़िया आपके दरवाजे पर खड़ी है कुछ भिक्षा दे दो और  तब तक बोलती रहती जब तक कुछ मिल नही जाता था | उसकी आवाज सुनकर घर में उपस्थित ब्यक्ति  उसके लिए जल्दी से कुछ न कुछ लाकर दे देते थे | वे जानते थे की ये बिना कुछ लिये यंहा से हिलने वाली नही है | इस तरह बुढ़िया जब भिक्षा पा जाती तो आशीष बचन बोलकर दूसरे घर चली जाती इस तरह मांगते मांगते दोनों भीखारिने जब कालोनी के दूसरे सड़क पर मिली तो आपस में बाते करने लगी की आज तुझे कितना मिला,तो पहली वाली बोली हमे रोज की तरह यही चार पांच रुपये और सेर भर आटा मिला है ,और तुझे ?हमे चालीस से पचास रूपये और आठ से दस सेर आटा.यह सुनकर पहली वाली ने पूछा तू कैसे मांगती है ,दूसरी ने  उत्तर दिया ,मैं तो जिस किसी के घर जाती हूँ बिना कुछ आशीष बचन दिये मांगना शुरु कर देती हू और तब तक बोलती रहती हू जब तक की घर से भिक्षा मिल नही जाता है | इससे कालोनी वाले मेरी आवाज पहचान गए है और जान गए है कि इसे जब तक कुछ मिल नही जाएगा तब  तक यह हटेगी नही, इस लिए वे मेरे पहुचते ही कुछ न कुछ देकर छूट्टी पा लेते है और मैं कुछ आशीष बचन दे कर | यह सुनकर पहली वाली बुढ़िया सोचने लगी की मुझे भी  कुछ ज्यादा पाने के लिया आपना तरीका बदलना पड़ेगा| इस संसार मे आदमी आशीष बचन सुनकर उतना कुछ नही देता जितना डर से भय से तथा अपने स्वार्थ पूर्ति के कारण देता है |