Wednesday, May 3, 2017

bhayag ka khel


  • मनुष्य का भाग्य कोई भी नहीं जनता कब भाग्य मनुष्य के सामने प्रगट हो जाये और उसको रंक से राजा बना दे और कब उसके सामने दुर्भाग्य प्रगट हो जाये और उसको राजा से रंक बना देवे इसको शायद ईश्वर ही जनता होगा, लेकिन कुछ वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति कहते है की कर्म से भाग्य बनता है यह भी बहुत हद तक सही भी है यदि यह दोनों ही बाते सही हैं तो दोनों में कोई कोई तो श्रेष्ठ होगा ही। यह कहानी इसी बात पर अपना विचार प्रकट कराती है और विश्लेषण करना पाठको पर छोड़ती है।घटना एक ऐसे आदमी से सम्बंधित जो की बेहद ईमानदार और मेहनती थे:और सरकारी विभाग सुपरवाईजरी की  नौकरी करते थे  वे अपना कार्य बड़ी ही तन्यमयता  और परिश्रम से करते थे।इनका नाम  रमेश था।  इसके साथ ही वो अपने प्रमोशन को ध्यान में रख कर सम्बंधित किताबो की पढाई भी किया करते थे। लेकिन भाग्य कहिये या फिर उनकी पढाई में खोट कहिये वो जब भी परीछा में बैठते थे तो  लिखित परीछा को पास कर लेने बावजूद भी आज तक कोई साक्षात्कार पास नहीं कर पाए थे उनकी भर्ती जिस पद पर हुई थी उसी पद पर आज भी थे। आखिर कर हारकर उन्होंने पढाई लिखाई छोड़ कर जिंदगी का आनन्द लेते हुए परीछा देने का फैसला लिया। और इसके लिए वो अपनी पोस्टिंग स्थान और कार्य की प्रकृत को नजर अंदाज़ करते हुए एक बार सिनेमा देखने अपना मुख्यालय छोड़ कर जिला मुख्यालय चले गए। सिनेमा देखने के पश्चात् वो जल्दी से स्टेशन पहुँच कर ट्रेन पकड़ कर अपने मुख्यालय पहुंचना चाहते थे। लेकिन स्टेशन पर पहुँचने पर पता चला की अभी डिप्टी साहब आएंगे तभी ट्रेन चलेगी; उधर जनता ट्रेन चलने का इंतजार करते करते उबने लगी तो जाकर स्टेशन मास्टर पूछने लगी कि साहब ट्रेन ट्रेन क्यों नहीं चला रहें हैं।इसी दौरान  कुछ लोग स्टेशन मास्टर साहब  से विवाद करने लगे की आप ट्रेन क्यों नहीं चला रहे पहले तो स्टेशन मास्टर साहब  ने इधर उधर की बात बनाने का प्रयास  किया लेकिन जब वह जनता के तर्कों का कोई उत्तर दे सके तो उन्होंने झल्ला कर सही बात बता दिया जो अभी तक वो छिपा रहे थे ,की डिप्टी साहब अभी आयेंगे तो यह ट्रेन चलेगी। अब सिनेमा समाप्त ही होने वाला होगा या सिनेमा समाप्त हो गया होगा।  इतना सुनना था की जनता भड़क गई और उलुल जुलूल बात बोलने लगी कुछ ने तो स्टेशन मास्टर पर अपशब्दों का बौछार शुरू कर दिया।  इतने में डिप्टी साहब शायद सिनेमा समाप्त हो जाने के कारण स्टेशन पर गए और स्टेशन से लाउड स्पीकर पर यह बोला जाने लगा की सभी यात्रियों से अनुरोध है की सभी लोग ट्रेन में अपने अपने स्थान पर बैठे ट्रेन चलने वाली है। इतना सुनना था की यात्री ट्रैन की तरफ बढे और मामले से बेखबर डिप्टी साहब भी ट्रैन की तरफ अपने खैरख्वाह मातहतों से पुरसाहाली करवाते हुए अपने कोच की तरफ बढ़ ही रहे थे कि किसी यात्री की निगाह उनके ऊपर पड़ी और वो चिल्ला पड़ा देखो यही डिप्टी है जिसके कारण ट्रेन  इतनी देर से  रुकी है इतना सुनना था कि भीड़ में से किसी ने बोला  कि मारो इसी के कारण हम लोग यहाँ अनायास लगभग  एक घण्टे से माखी मर रहे हैं इतना सुनना था कि पता नहीं किसने पहला हाथ उठा कर डिप्टी साहब के ऊपर पहला प्रहार किया इसका तो पता चाल सका लेकिन उसके बाद सैकड़ो हाथ उठ्ने लगे और डिप्टी साहब के ऊपर गिरने लगे इतने में घटना देख रहे रमेश बाबू  अपने वफादारी परिचय  तुरंत डिप्टी साहब के ऊपर लेट गए आखरी कर रमेश बाबू ऐसा क्यों नहीं करते वो उनके डिप्टी थे। अब जो भी हाथ ऊपर उठे एक आध हाथ रमेश बाबू को पड़े लेकिन जनता उनको ऊपर से हटा कर अपने बर्बाद हुए समय का हिसाब लगता है डिप्टी साहब को मार कर निकाल लेना चाहती थी  , लेकिन रमेश  बाबू  डिप्टी साहब के ऊपर से हटने को तैयार थे इस धक्का मुक्की में एक आद हाथ रमेश बाबू को भी पड़े लेकिन उन्होंने अपने वफादारी का परिचय देते हुए इस चोट को बर्दास्त किया। इतने में दो चार पुलिस के लोगों के  गये इस कारण से  यात्रियों ने सोचा की बात का बतंगड़ हो जाये सारे यात्री अपने अपने  कोच में दौड़ कर चले गए इसके पश्चात् रमेश बाबू तुरन्त अपने डिप्टी साहब के ऊपर से उठे और डिप्टी साहब को उठने का मौका दे कर उनके भी कपड़ों के धुल धक्कड़ को झाड़ना शुरू कर दिया। इसके पश्चात् डिप्टी साहब से पूछने लगे  कि  कोई खास चोट तो नहीं लगी। डिप्टी साहब ने इस बात का उत्तर देकर बोला की जनता भी कितनी उद्दंड होती है इसका आज तक मुझे पता नहीं था, आज तक मैंने  अपने  कर्मचारियों पर ही शासन किया था उनको जैसे चाह वैसे बोला उनकी ऐसी की तैसी किया लेकिन किसी की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। इसी बात ने हमें बद दिमाग बना दिया था और इसका फल हमें ईश्वर ने दे दिया। अब मैं पूरी जिन्दगी भर इस बात को गाठ बांध कर रखूँगा की जनता से जुड़े मामलों में फैसला बड़ी सावधानी से लेनी है। बात को पलटते हुए डिप्टी साहब ने रमेश बाबू से बोला  और बोलो रमेश तुम यहाँ कैसे आये थे। साहब इलाके के दौरे पर आया था तो पता चला की डिप्टी साहब यहाँ आये हैं तो सोचा चलो आप से मिलता चलू तब तक यह घटना  हो गई। अच्छा रमेश इ घटना का जिक्र किसी से भी करना। साहब आप भी क्या कह रहे हैं यह भी कोई जिक्र करने वाली बात है। इसके पश्चात दोनों लोग अपने अपने रास्ते चले गए। दूसरे दिन डिप्टी साहब ऑफिस अपने को सहज रखते हुए पहुँचे किन्तु ऑफिस के स्टाफ कौतुहलता से दबी नज़रों से उनको देखना चाह रहे थे पता नहीं यह बात ऑफिस के स्टाफ को पता चल गया था क्या। 

  • इस  घटना बीते कई वर्ष हो गए और शायद सारे लोग इसे भूल भी गए थे सब कुछ सामान्य चल रहा था , इसी दौरान प्रोन्नति के लिये एक विभागीय परीक्षा की वेकन्सी निकली  जिसके लिए सारे योग्य उमीदवार परीक्षा में बैठने के लिए फार्म भरने लगे फार्म भरने वालों में रमेश बाबू भी थे न्होंने बड़े अनमने मन से फार्म भरा क्योकि वो कई बार इस के लिए फार्म भर चुके थे और किन्तु पिछले कई बार से लिखित परीक्षा में पास होने के वावजूद फाइनल सलेक्शन  होने के कारण  उनका मन अनमना से परीक्षा में बैठने के लिये बना रहता  था; लेकिन न्होंने सोचा की चलो सब फार्म भर रहे हैं तो चलो मैं भी फार्म भर देता हूँ कौन सा  पैसा  लग  रहा है। यह सोच विचार कर न्होंने फार्म भर दिया और सोचा की चलो बहती गंगा में हाथ धो लिया जय। आदमी भाग्य  कौन जनता है कब भाग्य रंक से राजा बना दे और कब दुर्भाग्य राजा से रंक बना दे और उन्होंने सामान्य पढाई शुरू कर दिया। इस परीक्षा की कमेटी में वही डिप्टी साहब थे जिनका बचाव रमेश बाबू ने अपनी जान पर खेल किया था सोचा चलो एक दिन डिप्टी साहब से मिल लेता हूँ और एक बार उनको नमस्ते कर लेता हूँ ,ये सोच कर रमेश बाबू एक दिन डिप्टी साहब के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और बोले साहब मैंने भी प्रोन्नति परीछा का फॉर्म भरा है मै आप की दया दृष्टि अपने ऊपर चाहता हूँ। डिप्टी साहब ने भी उनकी बात को सुना और बोलै अच्छी तरह तैयारी कर परीक्षा में बैठिये भगवान चाहेगा तो आप का सलेक्शन हो कर रहेगा। 
  •  रमेश बाबू को डिप्टी साहब की तरफ कोई अस्पष्ट आश्वाशन न मिलने पर वह अपने  मन ही मन  में भुनभुनानें लगे ये अधिकारी ऐसे ही होते है इनके साथ किसी भी स्तर का उपकार कर दो किन्तु ये उसी तरह बात भूलते हैं जैसे देश के नेता अपने चुनावी वादे को भूलते हैं। खैर समय बिता बात बीती परीक्षा का समय आया परीक्षा हुआ रमेश बाबू भी परीक्षा दिए ;किन्तु रमेश बाबू ने मह्शूश किया कि इस बार परीक्षा  पहले दिये गये परीक्षा से कुछ ख़राब ही हुआ है। 
  •   समय आने पर परीक्षा का परिणाम आया ,उसमे रमेश बाबू का नाम सफल प्रत्याशियों में  सबसे ऊपर था। रमेश बाबू डिप्टी साहब के चैम्बर में गये उनके सामने कुछ बोल नहीं पाये उनके आखों में कृतज्ञता के आसूं थे वो केवल उनके सामने हाथ जोड़ कर खड़े रहे ,डिप्टी साहब , रमेश बाबू के मनोभावों को समझते हुए बोले ये आप के परिश्रम का परिणाम है ,नहीं साहब आप की बहुत बड़ी कृपा है। रमेश बाबू मन ही मन सोच रहे थे बड़े आदमी बड़े ही होते हैं।साच्छात्कार  का दिन आया सारे सफल अभ्यर्थियों का साच्छात्कार  हुआ ,परिणाम निकला उसमे भी रमेश बाबू का नाम प्रथम स्थान पर था।  
  •   रमेश बाबू को  ऑफिस में बधाईयों का ताता लग गया आखिर कर लोग बधाई क्यों न देते  रमेश बाबू  अब से अधिकारी हो गये थे। किन्तु ऑफिस स्टाफ के मन में कहीं न कही यह बात बैठी थी की रमेश बाबू का यह प्रोनति डिप्टी साहब की अनुकम्पा का ही कहीं न कहीं परिणाम है। हो जो कुछ भी आज के दिन से रमेश बाबू अधिकारी थे आखरी कर परिणाम  तो परिणाम होता है और अन्तोगत्वा वही  मायने रखता हैं। कुछ लोग इसे रमेश बाबू के भाग्य का खेल मानते थे तो कुछ लोग उनके द्वारा किये गये कर्म और  सही समय पर लिए गए उचित निर्णय का परिणाम मानते थे।