Friday, February 22, 2008

चालाकी और पश्चाताप


चालाकी और पश्चाताप
इस संसार में कुछ व्यक्तियों को अपनी बुद्धि पर इतना गर्व होता है कि वो सामने वाले को कुछ समझते ही नहीं हैं| ऐसे ही एक व्यक्ति संतोष जी थे जिनके गुण और उनके नाम में कोई मिलान नहीं था जो यदि किसी दुकान पर चले जाते, और दुकानदार ने किसी भी समान का कितना भी उचित दाम क्यों न बोला हो लेकिन वो बिना मोलभाव के समान ही नहीं ले सकते थे | ऐसे ही बिजनेस के संबंध में दिल्ली जाना हुआ वहाँ पर दिल्ली रेलवे स्टेशन से टेम्पो पकड़कर नोएडा  किसी कंपनी में काम के वास्ते गए तथा वहाँ से काम करके फिर दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वापस लौटने के लिए टैम्पो स्टैंड से टेम्पो पकड़ने गए आदत से मजबूर होने के कारण सोचा कि चलो इधर से दिल्ली तक बिना मीटर चलवाये ही टैम्पो से चलते हैं और मुझे एक तरफ का किराया पता ही है | आते समय लगे किराये से बीस पच्चीस कम में किराया तय करके ही किसी टेम्पो से चलते हैं | टैम्पो स्टैंड पर टेम्पो वालों से बात करना शुरू किया लेकिन कोई भी डेढ़ सौ से नीचे तैयार ही नहीं हो रहा था जो कि आये हुए किराये से करीब बीस  रूपये ज्यादा था | अपने को मज़बूरी में पाकर एक टेम्पो वाले को लेकर मीटर रीडिंग के अनुसार किराए की बात करके टेम्पो पर चढे और दिल्ली के लिए चल दिए वह शायद यह निश्चय करके इनको अपने टेम्पो पर बैठाया की देखो अपनी चालाकी का परिणाम, आप समझते हो कि मैं ही चालाक हूँ अरे आप अपने कारोबार, काम काज में चतुर होंगे यह हम लोगो का कारोबार है जिसमे प्रतिदिन कितने ही व्यक्तियों को टेम्पो पर चढाकर इधर से उधर घुमाकर और उलूल-जुलूल का किराया लेकर उन लोगो को प्रसन्नता से विदा कर दिया जाता है | जैसे ही टैम्पो थोड़ी दूर आगे बढ़ी एक पेट्रोल पम्प पर टैम्पो खड़ा करके टैम्पो में तेल लेने के बाद ड्राईवर ने संतोष जी से बड़े ही सम्मानजनक लहजे में बोला साहब जरा सौ रूपए दीजिए पेट्रोल का दाम दे दूँ यह पैसा आप किराये में से काट लीजियेगा सवारी से सौ रूपए लेकर तेल का दाम पेट्रोल पम्प पर चुकता करने के बाद टैम्पो को हवा से बातें कराते हुए अपने सवारी को अपने धंधे की परेशानियों, अपने धंधे में लगे हुए व्यक्तियों तथा टैम्पो पर बैठने वाली सवारियों के व्यवहारगत अच्छाइयों तथा बुराइओं के बारे में बात करते हुए अपने सवारी को बातों में ऐसा उलझाया कि वह दिल्ली पहुँचते-पहुँचते यह भूल गए कि हमें टेम्पो वाले को किराया देते समय उसमे से सौ रूपये काटना भी है | अंत में दिल्ली स्टेशन पर पहुँच कर टेम्पो को ऐसे स्थान पर रोका कि जहाँ से बस इत्यादि इतनी तेजी से गुजर रही थी कि कोई भी व्यक्ति उस स्थान से अपना काम करके जल्दी से हट जाना चाहे यही बात संतोष जी के साथ हुई, उन्होने मीटर देखा, मीटर के अनुसार किराया एक सौ उन्न्तीस बनता था टेम्पो वाले को एक सौ तीस रुपये दिए टैम्पो वाले ने भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे पैसा लिया और नमस्कार करके टैम्पो लेकर चलता बना संतोष जी जैसे ही सड़क पार कर स्टेशन कि तरफ बढे, उनको एकाएक याद आया, अरे टैम्पो वाले को एक सौ तेल भरवाते समय दिया था उसको तो मैं किराये में काटना ही भूल गया पीछे मुड़ कर देखा तो टैम्पो वाला तो वहाँ से नदारत हो गया था अब सौ रूपये गवाने पर अफ़सोस के सिवाये कुछ भी न था संतोष जी मन ही मन सोच रहे थे कि देखो बातें कितने ऊंचे आदर्शों की कर रहा था और काम कितना घटिया कर गया कितनी सफाई से एक सौ रूपये का चूना लगा कर नौ दो ग्यारह हो गया |

Tuesday, February 19, 2008

एक पंथ दो काज

एक पंथ दो काज

रामदीन और सुरेश बाबु दोनो पड़ोसी थे | दोनों एक ही विभाग में अलग - अलग ऑफिस में काम करते थे | रामदीन अपने ऑफिस मे चपरासी पद पर कार्यरत था , तो सुरेश बाबू कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे | एक बार रामदीन गंभीर रूप से बीमार पड़ा तो उसके घर के लोगों ने ले जा कर अस्पताल मे भर्ती करना पड़ा इलाज के लिए  | कालोनी  के कई लोग अस्पताल जा कर रामदीन को देखते तथा ईश्वर  से जल्दी स्वस्थ कर देने की प्रार्थना  करते | सुरेश बाबू  पड़ोसी होने के कारण उसे देखने जाना अपना नैतिक कर्तव्य समझते थे ,किन्तु इनका पद इस कर्तव्य मे आड़े आ जाता था | उनके मन मे कहीं न कहीं ये बात अटकी हुई रहती थी की कहाँ मैं कार्यालय अधीक्षक और एक चपरासी का हाल चाल लेने अस्पताल जाऊँ | इतफाक से उनका एक मित्र दुर्घटना मे घायल होने के कारण उसे उसी अस्पताल मे जा कर भर्ती हुआ और जब इस बात का पता सुरेश बाबू को चला तो वह उसे देखने अस्पताल पहुँचे| किंतु सुरेश बाबू  के पास वार्ड नम्बर तथा बेड नम्बर का  पता न  होने के कारण वे सारे वार्डो  मे जा  जाकर अपने मित्र को ढूढने लगे इतफाक से सुरेश बाबू उसी वार्ड मे पहुँच गए जिसमे रामदीन भर्ती था |रामदीन की पत्नी की निगाह सुरेश बाबू की आँखों से टकराई तो सुरेश बाबू  न चाहते हुए भी रामदीन के बेड  के पास जा कर बैठ गये और उसके पत्नी से रामदीन का हाल चाल पूछने लगे | हाल चाल बताने के बाद रामदीन की पत्नी ने सुरेश बाबू से पूछा की कोई और भरती है क्या बाबू, जिसे आप देखने आए है | नहीं और कोई नहीं भर्ती  है,  यही रामदीन का समाचार लेने आया था | कई दिनों से रामदीन को देखने आना चाहता था किन्तु  आफिस से फुरसत ही नहीं मिल पा रहा था | रामदीन की पत्नी के आँखों में खुशी और गर्व के आसू आ गए सोचने लगी बाबू आधिकारी के पद पर होते हुए भी इनको देखने आये | वह सुरेश बाबू से भावातिरेक में  बोलने लगी बाबू ऐसे ही समय के लिए तो साथ समाज होता है आखिर कार पड़ोसी भी तो परिवार  का एक अंग ही होता है | सुरेश बाबू ने भावनाओ मे बहती हुई ये बात सुनी तो इस झूठ के लिए उनकी आत्मा उनको धिकारने लगे  किंतु स्वार्थ बुद्धि ने कहा की चलो एक पंथ दो काज हो गया | आया था मित्र को देखने इसी बहाने रामदीन को भी देख लिया, हाल-चाल ले लिया और एक सामाजिक व्यवहार भी निभा दिया  |

Saturday, February 2, 2008

नैतिकता

नैतिकता

जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकी, ट्रेन से उतरने वाले यात्री उतरने लगे ,चढ़ने वाले यात्री प्लेटफार्म पर खड़े होकर उतरने वाले यात्रियों के उतर जाने का इंतजार करने लगे | जैसे ट्रेन से उतर जाने वाले यात्री ट्रेन से नीचे उतर गए चढ़ने के लिए खड़े यात्री बोगी में जल्दी जल्दी चढ़कर सीटों पर बैठने  लगे उन्ही यात्रियों मे से एक महिला खाली  सीट देख कर बैठने के लिए आगे बढ़ी तो उस सीट के बगल मे बैठे यात्री ने अपना बैग आगे बढ़ते हुए बोला सीट खाली नही है ,कही और देख लीजिए यह देख कर यात्री के सामने बैठे एक अधेड़ से दिख रहे यात्री ने उससे कहा की लेडीज़ है बैठने दीजिए भाई | तब तक एक और महिला यात्री आई और उस सलाह देने वाले अधेड़ यात्री के बगल मे बैठने के लिए आगे बढ़ी तो उस अधेड़ यात्री ने कहा जगह खली नही है कही और देख लीजिए | यह देख कर सामने बैठे यात्री ने, अधेड़ यात्री का जुमला दोहराया लेडीज़ है बैठने दीजिए आप के बगल के तो बैठे यात्री आपना बैग ले कर उतर गए है| यह सुनकर अधेड़ यात्री ने अपने आखो की त्योरी बदल कर उतर दिया की आप को कैसे मालूम ,उन्होंने मुझसे कहा की मैं अभी आ रहा हू उतर सुनकर सामने वाला यात्री स्तब्ध हो गया और इनकी नैतिकता के बारे मे सोचने लगा |