Saturday, December 6, 2008
विचार prawah २१ disambar
विचार प्रवाह DECEMBER ६
Friday, November 28, 2008
मंघरांत विचार
Friday, August 15, 2008
अफ़सोस
Wednesday, July 23, 2008
फैशन शो (fashion शो)
Tuesday, June 17, 2008
इकनामी ड्राइव
Monday, May 26, 2008
गणित मे कमजोर(Gandit me Kamjor)
Sunday, May 11, 2008
हाजिर जवाबी
Monday, April 21, 2008
कुर्सी का रोग(kurshi kaRog)
Wednesday, April 16, 2008
सीख
सीख
ट्रेन रुकते ही यात्री जल्दी जल्दी चढ़ने लगे | उनमे से दो मित्र आमने-सामने वाली सीटों पर बैठने के लिए अग्रसर हुए | शायद ट्रेन के बोगी की खिड़की खुला होने के कारण सीटों पर वर्षा का पानी आने के कारण दोनों सीटें खली पड़ी हुई थी | उनमे से एक मित्र ने अपने बैठने वाली पूरी सीट को पोंछकर बैठना उचित समझा तो दूसरा मित्र उसको उपदेश देता हुआ बोला की पूरी सीट साफ करने की क्या जरूरत है, जितने पर बैठना है उतने ही भाग को साफ करो, जो कोई दूसरा आएगा वह अपना बैठने के स्थान की सफाई करेगा | मैं तो इस सामने वाली सीट पर अपने बैठने की जगह भर के ही पानी को साफ करूँगा, और दूसरा व्यक्ति जो भी बैठने के लिए आएगा वह अपने बैठने वाले जगह की सफ़ाई करके बैठेगा, मै किसी और के बैठने के स्थान की सफाई क्यों करूँ | और वह अपने बैठने भर की जगह साफ करके बगल में बैग रखकर बैठ गया | दूसरा मित्र बोला कि अरे थोडी सी और सफ़ाई कर दोगे तो छोटे नही हो जाओगे| अरे कुछ नि:स्वार्थ भाव से भी कार्य करना सीखो | इस तरह दोनों मित्र बात करते हुए सफर तय करके अपने गंतव्य स्टेशन पर पहुँच कर अपना-अपना सामान उठाकर उतरने कि तैयारी करने लगे तो दूसरे मित्र को अपना बैग कुछ भीगा सा महसूस हुआ | वह जल्दी से बैग के अन्दर से सामान निकाल कर देखना शुरू किया कि कही कुछ भीग तो नहीं गया है तो उसने पाया कि साक्षात्कार के वास्ते जो कॉल लैटर (बुलावा पत्र) रखा था, वह भीग गया था, साथ में कपड़े भी भीग गए थे | यह देखकर शर्मिंदगी महसूस करता हुआ अपने मित्र से बोला की काश मैंने तुम्हारी यह सीख मान ली होती की कभी-कभी नि:स्वार्थ भाव से कर्म कर लिया करो | ठीक ही किसी ने कहा है की सबकी भलाई में ही अपना भला समझो |