Saturday, December 6, 2008

विचार prawah २१ disambar

यह संसार भी एक अदभुत जगह है जहा लोग अपने नित नए - नए विचार देते रहते हैं। चाहे इसका महत्व आम जनता के लिए रखता हो या नही या फिर इससे आम जनता को फायदा हो या नही ऐसे ही विचार तमाम साधुसंतो के द्वारा मंच पर बैठ कर अपने शिष्यों और चेलों को दिया जाता है की यह संसार सब मोह माया है इससे मुक्ति पाने का उपाय हमें करना चाहिए और मुक्ति पाने का उपाय बताया जाता है सारी मोह माया का त्यागा चाहिए, मोह माया के त्याग का मतलब बताया जाता है की सारा धन, दौलत, घर परिवार छोंड कर ईश्वर की भक्ति की जावे इससे ईश्वर प्रसन होंगे और आप को इस संसार से मुक्ति देंगे और स्वर्ग में अपने पास स्थान देंगे और भी ब्यक्ति तमाम तरह के तर्क दिए करते तो क्या इसका मतलब यह हुआ की इश्वर यह देखते रहते है कि अमुख आदमी के पास ज्यादा धन दौलत है उसको दर्शन नही देना है और अमुख आदमी के पास धन दौलत नही है उसको ही दर्शन देना है उसको ही मुक्ति देना है। लेकिन देखने में यह मिलता है कि जिसके पास धन दौलत नही है उसको भी ईश्वर के दर्शन नही होते हैं चाहे वह कितना भी ईश्वर के पूजा पाठ में लीन हो बताने वाले संत यह क्यों नही बताते है कि जो यह फूलों में सुगंध दिख रहा है,सूरज का प्रकाश दिख रहा है, चंद्रमा की शीतल चादनी दिख रही है, नदी, झरने, समुद्र,अच्छे विचार और अच्छे काम में लगे सारे लोगों के रूप में ईश्वर हमें दर्शन दे रहा है और हमें प्रेरित कर रहा है कि मै तुमको अपना प्रतिरूप बनाकर ईस संसार में भेजा हूँ तुम अच्छे अच्छे काम करो इससे ही तुम्हारी मुक्ति है इसी में तुम्हारी भलाई है इसी में तुम्हारा कल्याण है इसके अलावे इसी में इस संसार का कल्याण है। इन बातों को बताने के बदले जो ब्यक्ति शीर्ष पर बैठें है जो ख़ुद को ज्ञानी समझते हैं वो ख़ुद ही इस संसार के लोगों के बीच ग़लत उपदेस देते हैं, अपने शिष्यों के बीच ग़लत ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं जो ब्यक्ति ग़लत ज्ञान का प्रकाश फैलता ग़लत उपदेशों को अपने शिष्यों के बीच देता हो वह क्या इस संसार का भला कर सकता है लेकिन इस संसार में उस ब्यक्ति की बाते ज्यादा प्रभावी हैं ज्यादा सुनी जाती हैं ज्यादा मानी जाती हैं जो मंच से बैठ कर टीवी पर ज्यादा से ज्यादा उपदेश दे सके ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच अपनी बातो को पहुंचा। क्या अपने दायित्वों से भागना इस संसार से मुक्ति पाना है यदि यह संसार से मुक्ति पाना है तो ऐसी विचार धारा को उखांड फेकना चाहिए। इस संसार में अच्छा से अच्छा काम और बुरा बुरा काम पैसे के बिना संपन्न नही किया जा सकता है। अगर यह बात इतनी ही सत्य है की मोह माया के त्याग से ईश्वर की प्राप्ति होतीहै तो इसे उदाहरण सहित इस संसार के सामने रखना चाहिए।इन ज्ञानी ब्यक्तियों के द्वारा जीन मध्यमो के द्वारा उपदेश दिया जा रहा वह भी किसी संसारी ब्यक्तियों के द्वारा ही बनाया गया है। न की अपने जिम्मदारी से भागे ब्यक्ति के द्वारा।उन उपदेशो से क्या फ़ायदा जो इस समाज का भला न कर पाए , जो पलायनवाद को सिखाये। ऐसे ज्ञानी ब्यक्तियों के चक्कर में पराने के बयाजे ब्यक्ति यदि इन्सान,दिन दुखिओं की सेवा में लगा रहे तो इश्वर को जल्द से जल्द प्राप्त कर सकता है अपेछा कृत की अपनी जिम्मेदारियों से भाग कर,जिम्मदारी से भागना कायरता के अलावे और कुछ भी नही है

विचार प्रवाह DECEMBER ६

जब भी कोई घटना या दुर्घटना हो जाती है तो उसको लेकर बहस का दौर सुरु हो जाता है जैसे मुंबई पर ही आतंकवादी हमला हो उसको लेकर आम जनता से लेकर बुधाजिवियो तक में लेकर यह बहस छिड़ है की हम भारतीयों की कैसी सुरक्षा बयाव्स्था है जो की आतंकवादियों के द्वारा बार बार भेद दिया जाता है जबकि अमेरिका में एक ही बार आतंकवादियों के द्वारा हमला किया गया और अमेरिका ने ऐसा अभेद्ब्यास्था किया की आतंकवादियों के द्वारा आज तक नही भेद पाया गया , शायद लोगो की यह बात सही हो किन्तु इस संबंधन में हमें यह बात सदैव यह यद् रखनी चाहिए की आप कितना भी अभेद सुरक्षा बना लेवे लेकिन हमला करने वाला सैदेव आप के ऊपर होता है वह तो सदैव हमला करने के फिराक में लगा रहता है इस लिए उसके सफलता की दर सदैव ऊपर बनी रहेगी इस लिए किसी भी देश को इस मुगालते में नही रहना चाहिए की हमारी सुरक्षा अभेद है अगर एक ब्यक्ति यह सोच ले की हमें मरना है तो फिर वह बहुत से बिखरे लोगो पर भरी है यहाँ पर मेरे कहने का आशय यह नही है की हमें अपनी सुरक्षा नही करनी चाहिए बल्कि सुरक्षा से अधिक आवश्यक आतंकवादियों के गढ़ पर हमला करना , उनके विचारधाराओं पर पर हमला बोलना , सारे विश्व को एक साथ इस मुद्दे पर सोचना होगा तभी इस समस्या से निजात पाया जा सकता है नही तो यह आज भारत की ,अमेरिका की समस्या है तो कल के दिन सारे विश्व की समस्या होगी ।यदि विश्व के देश आज नही सम्हले तो कल के दिन उनको इस समस्या से जूझने के लिए तैयार रहना ही होगा क्योंकि आतंकी यह सोचते हैं की जो हम लोग सोच रहे हैं वही सही है बाकि सारे लोगों के सोच ग़लत हैं ।

Friday, November 28, 2008

मंघरांत विचार

सुरेश भट्ट की गिनती बुद्धिजीवी लोगो में होती थी। जब भी कोई घटना या विशेष अवसर पंदाता था तो उनका सलाह अवस्य लिया जाता था। एक बार आतंकवादियों ने देश के एक बड़े शहर पर आतंकी धावा बोल दिया तो देश के बुद्धिजीवी अपने अपने सलाह टीवी पर देने लगे कोई कहता ये आतंकवादी भटके हुए नौजवान है , तो कोई कहता हमें यह विचार करना होगा की ये नौजवान क्यों भटक गए है इस पर हमें विचार करना होगा , इस तरह के तमाम विचार बुद्धिजीवी लोग दे रहे थे इन बातो को सुनते - खीझ चुके एक विचारक ने अपनी बात रखते हुए कहा कीचलिए में आप सभी की बातो का समरथन करता हूँ और एक विचार आप सभी के सामने रखता हूँ क्यों नही हम सभी लोग इस न्यूज़ रूम से निकल कर चले आतंकवादियों से बात करे और वो जितने लोगों को बंधक बनाये है उन लोगों को हम लोग मुक्त करवावे इतना सुनते ही सारे विचारक बगले झाकने लगे और कहने लगे की खन्ना साहब आप तो ऐसी बात कर रहे है जैसे किसी पागल हठी के सामने पर जाओ और उसको पुचकार कर मनायाजाये तभी खन्ना साहब ने अपने मन में भुनभुनाया की ये सारे विचारक कमरे मई बैठकर खूब अच्छे अच्छे विचार दे सकते हैं लेकिन जब समस्या का सामना करना हो तो पीछे हट जाते है , शायद किसी ने ठीक ही कहा है की भगवान ने जहाज बनया समुद्र पर करने के लिए, पुल बनाया नदी पर करने के लिए ,दीपक बनाया रौशनी के लिए लेकिन कोए ऐसी चीज नही बनी जिससे दुस्तो का दिल जीता जा सके।

Friday, August 15, 2008

अफ़सोस

इस संसार में कुछ व्यक्तियों कि आर्थिक स्थिति कितनी भी अच्छी क्यों न हों| वे कितने भी अच्छे पद और प्रतिष्ठित पद पर क्यों न कार्यरत हों वो अपने आमदनी का रोना सदैव रोते रहते हैं| ऐसे ही एक व्यक्ति थे| जिनका नाम था विमलेश, जिनको प्यार से लोग विल्लू बाबू कहा करते थे| वो कार्यरत थे सप्लाई विभाग रसद आपूर्ति विभाग में लिपिक पद पर जहाँ पर तनख्वाह के अलावा वैसे कि आमद बराबर बनी रहती थी| ऑफिस में सीट भी ऐसी मिली थी| जहाँ से अधिकतर आदमियों को गुजरना ही पड़ता था| कोई भी व्यक्ति जिस किसी भी समाज या आदमियों के संपर्क में रहता है उन्ही के विचारों से प्रभावित होता रहता हैं और उसी तरह के विचार उसके मन में चलने लगते हैं| और उसकी सारी गतिविधियां उन्ही विचारों के प्रभाव में होती रहती हैं| बिल्लू बाबू भी इससे अछूते नहीं थे| उनके ऑफिस का माहौल सुबह से लेकर शाम तक ऐसा ही था| जहाँ पर छोटे से लेकर बड़ा तक ऊपरी दस रुपयों कि जुगाड़ में लगा रहता था| बिल्लू बाबू के जीवन में भी आमदनी का श्रौत अच्छा होने के बावजूद छल कपट से बचत का जुगाड़ उनके दिमाग में सदैव ही चलता रहता था| ऐसे ही ऑफिस के बात व्यवहार में एक ऐसे आदमी से मुलाकात हुई, जिसने अपना काम करवाने के एवज में एक ऐसा प्रस्ताव दिया जो विल्लू बाबू को सोने पे सुहागा महसूस हुआ| बातों ही बातों में सहमति होने पर उन्होंने उस व्यक्ति से शाम को घर पर आकर कार्य करवाने के लिए बोला और फिर दूसरे दिन अपना आदेश ले लेवे| तय समय के अनुसार वह व्यक्ति शाम को उनके घर आया तथा अपनी काबलियत के अनुसार घर कि विद्युत् विरिंग में पता नहीं क्या उलटफेर किया कि एक कमरे में कोई भी लाईट, पंखा इत्यादि चलाने पर भी विद्युत् मीटर को जैसे सांप सूंघ गया हों वह हिलता डुलता ही नहीं था| तथा और कमरों का लोड पड़ने पर मीटर समान्य रूप से चलने लगता था| यह करिश्मा देखकर बिल्लू बाबू इतने प्रसन्न हुए कि जो आदेश उस व्यक्ति को कल देने के लिए बोल रखा था| वह आदेश तुंरत उस व्यक्ति को दिया और चाय पानी कराकर उस आदमी को विदा किया| अब तो जैसे लगता था कि बिल्लू बाबू और उनके परिवार वालों को उनके मन की सोची हुई मुराद पूरी हों गयी हों| अब तो घर के किसी भी विद्युत् उपकरण को चलाना हो उसका सम्बन्ध लाकर अक्षय श्रौत से कर देते थे, जहाँ से बिजली का जो चाहो उपयोग करो लेकिन उनित एक पैसे का भी नहीं उठेगा| इस तरह से यदि बिजली के उपकरण को एक घंटा चलाने की आवश्यकता हो तो वह उपकरण कार्य हो जाने के बाद भी उसी तरह से चलता रहता था| कार्य लेने का यह तरीका यदि बिजली बिल से छुटकारा दिलाया था| तो उपकरणों के ख़राब होने की रफ़्तार को बढाया था| अब जो मांग बिजली के बिल में जाया करता था| वह भाग अब बिजली के उपकरणों के मरम्मत करने तथा बल्ब इत्यादि की खरीददारी में खर्च होने लगा, लेकिन इसकी तरफ किसका ध्यान जा रहा था| इस तरह यदि बिजली के किसी उपकरण में कोई छोटी मोटी खराबी गयी तो पैसा बचाने के लिए उसे अपने हाथ से ही ठीक करने लगे कुछ बना कुछ नहीं बना| लेकिन काम चलता रहा| इसी तरह कार्य करते-करते इलैक्ट्रिक प्रेस में करंट (विद्युत्) आने लगा, लेकिन चूकि वह कार्य कर रहा था| तो उसको बनवाने की ही क्या जरूरत थी| परिवार के लोग उससे कपडा प्रेस करते तो बड़ा ही सतर्क होकर कपडा प्रेस करते लेकिन कहा गया है की दुष्ट आदमियों और ख़राब उपकरणों से कितना भी सतर्क होकर रहिये| लेकिन आपसे जरा सी भी चूक हुई कि वो वो आपको चपेट में लिए बिना नहीं छोडेंगे| यही घटना एक दिन उनके लड़के राजू के साथ हुई, वह एक दिन कपडे प्रेस कर रहा था| कि पता नही कैसे उसका हाथ प्रेस से छू गया और वह जब तक चिल्लाता और कोई कुछ समझ पाता और प्रेस का स्विच ऑफ करता| राजू की आवाज गायब हो चूकी थी| और वह निढाल होकर जमीन पर गिर चुका था| सारे घर में रोना पिटना पद गया, लोगों के मन में तरह-तरह के विचार रहे थे| बिल्लू बाबू की जिंदगी ही जैसे सूनी हो गयी थी| इसी राजू का जन्म कितनी मनोतियों के बाद तीन लड़कियों के बाद हुआ था| उनको महसूस होता था| कि राजू का हत्यारा काल के क्रूर नियति ने नहीं किया हैं| बल्कि उसका हत्यारा मैं स्वयं हूँ| अब उनकी जिंदगी में इस घटना पर अफ़सोस करने के अलावा कुछ शेष बचा था|

Wednesday, July 23, 2008

फैशन शो (fashion शो)

टी.वी. पर आ रहा फैशन शो को छात्रावास के छात्र अपने-अपने तरीके से विश्लेषित कर रहे थे| जब मॉडल विभिन्न डिजाईन के कपड़े पहनकर उतरती थी तो, देखने वाले दर्शक आँखे फाड़कर पाता नहीं कपड़ो को देखते थे या उसे बनाने वाले कलाकार के सोच को देखते थे या फिर कुछ और देखते थे| ये बात तो वही जाने लेकिन छात्रावास के छात्रों कि सोच भी अजब निराली थी| कोई कहता देखो डिजाइनर ने दो पतले-पतले डोरी का कितना सही उपयोग किया है डोरी से हाथ और सिर डाला डोरी कंधे पर झूलने लगा| और पहनने वाली मॉडर्न स्टाइल के कपड़े को पहन कर तैयार हुई| तो दूसरे मॉडल पर एक और लड़के ने टिप्पणी किया कि देखो डिजाइनर ने इस महंगाई के ज़माने में किस तरह कपड़े का बचत किया है| तभी एक लड़के ने इस शर्ट का नाम शोर्ट शर्ट बताया तभी उसके बगल में खड़े एक लड़के ने उसका नाम अंग-उभारू शर्ट का नाम दिया| तभी एक मॉडल एक ऐसी पैंट पहनकर आई जिसकी पूरी फिटिंग इतनी टाइट थी कि जिसको पहनते समय कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी|यह वह मॉडल ही जानती होगी| पैंट घुटने के थोडा नीचे तक थी लेकिन वहां पर कुछ ढीली सी थी| तथा वहां पर एक झब्बरदार घेरा सा लगा था| वह घेरा कुत्ते के झब्बरदार पूँछ से बना लग रहा था| इसे देखकर उन लड़कों में से किसी ने चुटकी ली कि अरे है भाई कोई नामकरण कर्ता, इस ड्रेस का भी नामकरण करों| सारे लड़के चुप होकर किसी नाम के बारे में विचार कर ही रहे थे, कि तब तक देखते हैं कि कई मॉडल एक साथ अपने पुरुष जोडों के साथ रैंप पर इठलाकर, मचलकर ऐसे चल रही थी कि लगता था|जैसे कि वो कपड़ो के अलावे और भी कुछ दिखाना चाह रही हो| इन जोडो के साथ जो सबसे खास बात देखने में लग रही थी वो ये थी कि इनके साथ जितने पुरुष थे| इनके बदन कपड़ो से ढके थे, लेकिन जो इनके साथ महिला मॉडल थी वो अर्ध-नग्न कि तरह दिख रही थी| लगता था, डिजाइनर को इनके कपड़े बनाते समय कपड़ो कि कमी पद गई| थी| तभी इनके कपड़े शरीर उघाडू तथा बदन दिखाऊ कि तरह दिख रहे थे| इन कपड़ो को देखकर एक लड़के ने कमेन्ट किया कि सुपर शोर्ट ड्रेस तो दूसरे लड़के ने फिर का कसा अंगदर्सक और कामुक विचार सर्जक ड्रेस| तभी एक लड़का और बीच में बोल पड़ा कि ये कपडा अपने शहर में बिकने आ जाए तो पता नहीं कितने लोग पहनकर सड़को पर निकलेंगे| और अगर गलती से कोई इस बनावट के साथ पहन कर निकलकर गया तो शहर के कुत्ते इन्हें पागलों सरीखा समझकर शायद भौकने लग जाए| और शौह्दों कि तो बात ही न कहों उनकी तो चांदी हो जाते|

Tuesday, June 17, 2008

इकनामी ड्राइव

इकनामी ड्राइव में बोर्ड से पुरस्कार पा चुके डिप्टी साहब अपने अधिनस्त कर्मचारियों के यात्रा भत्ता, ओवर टाइम तथा रात्रि भत्ता इत्यादि पर बहुत ही कड़ी नज़र रखते थे| वे अपने कार्यालय के बड़े बाबू तथा सुपरवाइज़र स्टाफ को बार - बार हिदायत दिया करते थे| कि आप लोग इस बात पर हमेशा ध्यान रखे कि कोई आदमी अनावश्यक रूप से बार-बार यात्रा-भत्ते पर तो नहीं जा रहा है| जितना भी सम्भव हो आदमियों से काम न कराया जाए| और रात्रि के समय आदमियों को यदि काम पर लगाना पड़ता है| तो प्रयास किया जाए कि कम से कम आदमियों कि ड्यूटी लगाई जाए, जिससे सरकार के पैसे कि बचत कि जा सके| बचत के इस तरीके से वे अपनी नज़रों में देश भक्त थे| तो कर्मचारियों की नज़रों में उनके मुंह का निवाला छिनने वाले थे| इस तरह से कार्य करते हुए समय बीतता रहा| ऐसे में एक दिन उन्होंने बड़े बाबू को बुलाकर बोला कि बोर्ड कि मीटिंग वाली फाइल लेकर आईये| उसे लेकर मुझे बोर्ड कि मीटिंग में दिल्ली जाना है| बड़े बाबू, साहब अभी आप पिछले ही हफ्ते तो बोर्ड मीटिंग में गए थे| और काम भी हो गया था| नहीं अभी काम पूरा नहीं हुआ है| और हाँ, सुनिए मेरे साथ राम खिलावन की भी ड्यूटी बुक कर दीजिये| साहब दिल्ली से लौटकर आकर ऑफिस में बैठे तो, बड़े बाबू ने राम खिलावन से पुछा, साहब मीटिंग से लौट आये| राम खिलावन, हाँ साहब बार - बार मीटिंग में क्या जाते हैं| राम खिलावन, अरे बड़े बाबू छोडिये इन बातों को ये सुबह की बाते हैं| यात्रा भत्ता, ओवरटाइम भत्ता तथा रात्रि भत्ता पर रोक हम सब छोटे कर्मचारियों के लिए है, साहब लोगो के लिए नहीं है| आप जान रहे हैं कि पिछले कई बार से साहब बोर्ड कि मीटिंग में जाते हैं, आप किसी से कुछ बोलियेगा नहीं, मैं आप को सच्ची बात बता रहा हूँ| साहब अपने निम्मी बिटिया के शादी के वास्ते दिल्ली दोड़ लगा रहे हैं| मीटिंग तो एक बहाना है| इकनामी ड्राइव हम छोटे कर्मचारियों के लिए हैं, साहब सुबहा के लिए नहीं है|

Monday, May 26, 2008

गणित मे कमजोर(Gandit me Kamjor)


गणित मे कमजोर
यात्रियों को ट्रेन मे अपने देश के राजनीत सामाजिक विषयों के बारे मे चर्चा करने के लिए सबसे उपयुक्त तथा गर्मा गर्म माहौल मिलता है| ऐसे ही एक ट्रेन मे कुछ यात्री सफर करते हुए अपने देश के एक राज्य मे हो चुके चुनावों की चर्चा कर रहे थे की देखिये वहां की जनता मे आतंकवादियों को नकार कर वहां हो रहे चुनावों मे बढ चढ़ कर हिस्सा लेकर अपने पड़ोसी देश के मंसूबों पर पानी फेर दिया है| दूसरा यात्री बोला वहां की जनता ने आतंकवादियों की परवाह किए बिना विधान सभा की चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए करीब चालीस से पच्चास प्रतिशत के बीच में मतदान करते हुए यह साबित कर दिया है कि हम लोग अपने आन्तिरिक मामलों मे अपने किसी पड़ोसी देश की दखल बर्दास्त नही करेंगे| जैसे ही यात्री ने अपनी बात खत्म किया एक तीसरे यात्री ने बोलना आरम्भ किया की अपने पड़ोसी देश के शासक तो सारी दुनिया से अलग बोल रहे हैं| जहाँ सारी दुनिया मतदान का प्रतिशत चालीस  से पचास बता रही है| वहीं  वह मतदान का प्रतिशत केवल चार से पाँच के बीच बता रहे है| जैसे ही तीसरे यात्री ने अपनी बात खत्म किया उन लोगों के साथ चल रहा एक बच्चा तपाक से बड़ी ही मासूमियत से बोल पड़ा अंकल अपने पड़ोसी शासक अंकल जो हैं न लगता है वह गणित मे बहुत कमजोर है| जहाँ सारी दुनिया मतदान का  प्रतिशत प्रति सौ पर निकलती है, वही लगता है अपने पड़ोसी शासक अंकल प्रतिशत प्रति हजार पर निकालतेे हैं| जैसे ही बच्चे ने अपनी बात खत्म किया पूरे कम्पार्टमेंट का माहौल हँसी से गूंज उठा और कम्पार्टमेंट के सारे यात्री बच्चे को शाबासी देने लगे|

Sunday, May 11, 2008

हाजिर जवाबी

  हाजिर जवाबी


सुबह-सुबह  अखबार आते ही अपने समर्थकों तथा मिलने वाले लोगों के बीच मे बैठे नेता जी की नजर अखबार के  मुख्य ख़बर पर पड़ी जिसमे लिखा था कि उपद्रवियों  ने एक निराकार धर्म स्थल पर हमला कर के उसे क्षति  पहुचाने की कोशिश की जिसे पुलिस ने विफल कर दिया | नेता जी ने अखबार एक किनारे फेका और चाय पीते हुए बड़बड़ाने ने लगे की इस देश को सम्प्र्दायिक्ता की आग मे झोकने का मन बना लिया है  मौजूदा सरकार  ने इस सांप्रदायिक  खबरों को पढ़ने के पश्चात  नेता जे के द्वारा अखबार फेक देने के बाद उनसे मिलने आए एक व्यक्ति अखबार उठा कर पढ़ने  लगा और देखा की पेज न. दस पर एक कोने मे के ख़बर है की शीर्ष प्रदेश मे एक साकारोपासक धर्म स्थल को बम के द्वारा उडा दिया गया है | व्यक्ति ने नेता जी का ध्यान इस ख़बर की तरफ़ दिलाना चाहा और नेता जी को पढ़ने  के लिए  अखबार देना चाहा तो नेता जी ने बिना अखबार पढ़े  तुरंत उत्तर दिया की यह मुख पेज के घटना की प्रतिक्रिया होगी | लेकिन एक मे क्षति पहुचाने की कोशिश  करने पर उसे खबरों मे मुख्य पेज का स्थान दिया और दूसरे मे धर्म स्थल को बम से उड़ा दिए जाने पर भी दसवे पेज पर एक कोने मे स्थान दिया गया है इस बारे मे आप का क्या कहना है | इसमे संपादक ने सांप्रदायिक,सौहार्द बनाये रखने के लिए अपने बुद्धि तथा सूझ बुझ का परिचय दिया है | वाह नेता जी मान गया आपके हाजिर जबाबी को मुझे आज समाझ मे आया की चुनाव मे आप के सामने मुकाबले मे इतने प्रत्याशी खड़े होते है लेकिन परिणाम आने पर कैसे धराशायी हो जाते हैं | ये सब इसी हाजिर जवाबी और सूझ बुझ का ही कमाल है | नेता जी मंद-मंद मुस्कुराने लगे |

Monday, April 21, 2008

कुर्सी का रोग(kurshi kaRog)

कुर्सी  का रोग

रमेश बाबू बैंक की ग्रामीण शाखा मे लिपिक के पद पर कार्यरत थे | रमेश बाबू को बैंक मे जो कुर्सी मिली थी वह थी किसानो को लोन देने की जैसे ही कोई किसान लोन का फार्म भरकर ले आता, रमेश बाबू का प्रथम कार्य उसमे कमी निकलना था न कि कमियों को ठीक करवाना था कुल ले देकर कहें तो काम को टरकाना था | इस तरह से वह किसान तीन-चार बार दौड़ता  या फिर परेशान होकर बैंक में ही वहाँ के चपरासी या फिर लोन लेने वाले किसी किसान से सम्पर्क करता तो वो उसको वह उन  विधियों को समझा देते की लोन आसानी से कैसे मिल पायेगा|  सारा माजरा समझने के पश्चात किसान बैंक के बगल के मिठाई के दुकान से दूध वाली बर्फी और लिफाफे मे दस  अदद गाँधी छाप ले जाकर उनके घर पर मिलाने का बहाना बनाकर देता तो रमेश बाबू उससे बोलते इसकी क्या जरुरत है, अच्छा चलो रख दो तुम्हारा काम हो जायेगा |  इस तरह से रमेश बाबू की नौकरी अच्छी तरह से चल रही थी, तथा क्षेत्र के किसानों का लोन भी से स्वीकृति हो रहा था | बैठ कर काम करने और अत्यधिक  मिठाई के लत ने रमेश बाबू के शरीर को थुलथुला बना दिया था | इधर कुछ दिनों से  शरीर मे अकड़न और थोड़ा सा काम करने पर थकावट महसूस होने लगी थी रमेश बाबू को , इस परेशानी के निदान के लिए वह डॉक्टर से मिलने  , डॉक्टर ने चेकअप करके तुरंत ब्लड तथा यूरिन के चेक के लिए लिखा ब्लड तथा यूरिन चेक करने पर उसमे शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा बढा हुआ मिला | अब रमेश बाबू को इसका कारण समझने मे जरा भी देरी न लगी कि इस रोग का कारण क्या है | अब तक जो मिठाई अमृत सदृश्य लगती थी, अब वह जहर लगने लगी |  इस मिठाई ने केवल उन्हें ही रोगी नहीं बनाया था वह उनकी पत्नी और बच्चों की चर्बी से युक्त व रोगी बना दिया थ| अब रमेश बाबू का काम ऑफिस मे कम तथा घर परिवार के लोगों को व अपने को अस्पताल में इलाज कराने में ज़्यादा व्यतीत होने लगा | अभी तक जो भी पैसा जमा था वह दवा व इलाज इत्यादि मे ज़्यादा खर्च होने लगा साथ-साथ ऑफिस का भी कार्य बाधित होने लगा ऑफिस के कार्य मे बाधा देखकर बैंक प्रबंधक ने रमेश बाबू को लोन वाली कुर्सी से हटाकर फाइल व्यवस्था देखने तथा उचित ढंग से रखवाने का कार्य दे दिया अभी तक आने वाले ग्राहकों पर हुकुम चलाता था तो अब ऑफिस के ही अफसरों तथा बाबूओं के हुक्मों के अनुसार फाइल को निकालना तथा रखना पड़ता था लेकिन इस कुर्सी से उनको अप्रत्यक्ष रूप से दो लाभ हुआ, एक तो उठने बैठने के कारण शारीरिक व्यायाम हो जाता था, दूसरा मिठाई न खाने से शुगर का लेविल नही बढने पाता था अब धीमे-धीमे उठ बैठ कर कार्य करने से तथा साथ-साथ दवा लेने से शुगर का स्तर कम होने लगा, घर के लोगों को भी मिठाई ना खाने से उन लोगों का भी शुगर लेवेल नियंत्रित होने लगा था | अभी तक जो चीज़ दवा से नियंत्रित नही हो पा रही थी, वह धीमे-धीमे दिनचर्या, ख़ान-पान और कुर्सी बदल जाने से ठीक होने लगी | धीमे-धीमे वो  और उनका परिवार भला-चंगा हो गया परिवार मे पहले जैसी खुशी बस अपने वेतन के पैसे से ही आ गयी थी | अब अगर कोई ऑफिस में कहता रमेश बाबू, साहब से बोलकर लोन वाली कुर्सी फिर क्यों नही ले लेते तो उनका जवाब होता, उपरी कमाई की कुर्सी आप को ही मुबारक हो अब मैने समझ लिया है कि व्यक्ति के घर मे खुशी का वास अपनी मेहनत की कमाई और घर परिवार और समाज मे अपने कर्तव्यों के निर्वाह मे हैं |

Wednesday, April 16, 2008

सीख

सीख


ट्रेन रुकते ही यात्री जल्दी जल्दी चढ़ने लगे | उनमे से दो मित्र आमने-सामने वाली सीटों पर बैठने के लिए अग्रसर हुए | शायद ट्रेन के बोगी की खिड़की  खुला होने के कारण सीटों पर वर्षा का पानी आने के कारण दोनों सीटें खली पड़ी हुई थी | उनमे से एक मित्र ने अपने बैठने वाली पूरी सीट को पोंछकर बैठना उचित समझा तो दूसरा मित्र उसको उपदेश देता हुआ बोला की पूरी सीट साफ करने की क्या जरूरत है, जितने पर बैठना है उतने ही भाग को साफ करो, जो कोई दूसरा आएगा वह अपना बैठने के स्थान की सफाई करेगा | मैं तो इस सामने वाली सीट पर अपने बैठने की जगह भर के ही पानी को साफ करूँगा, और दूसरा व्यक्ति जो भी बैठने के लिए आएगा वह अपने बैठने वाले जगह की सफ़ाई करके बैठेगा, मै किसी और के बैठने के स्थान की सफाई क्यों करूँ | और वह अपने बैठने भर की जगह साफ करके बगल में बैग रखकर बैठ गया | दूसरा मित्र बोला कि अरे थोडी सी और सफ़ाई कर दोगे तो छोटे नही हो जाओगे| अरे कुछ नि:स्वार्थ भाव से भी कार्य करना सीखो | इस तरह दोनों मित्र बात करते हुए सफर तय करके अपने गंतव्य स्टेशन पर पहुँच कर अपना-अपना सामान उठाकर उतरने कि तैयारी करने लगे तो दूसरे मित्र को अपना बैग कुछ भीगा सा महसूस हुआ | वह जल्दी से बैग के अन्दर से सामान निकाल कर देखना शुरू किया कि कही कुछ भीग तो नहीं गया है तो उसने पाया कि साक्षात्कार के वास्ते जो कॉल लैटर (बुलावा पत्र) रखा था, वह भीग गया था, साथ में कपड़े भी भीग गए थे | यह देखकर शर्मिंदगी महसूस करता हुआ अपने मित्र से बोला की काश मैंने तुम्हारी यह सीख मान ली होती की कभी-कभी नि:स्वार्थ भाव से कर्म कर लिया करो | ठीक ही किसी ने कहा है की सबकी भलाई में ही अपना भला समझो | 


Saturday, April 12, 2008

एक स्वर

एक स्वर

 एक शाम चार मित्रों के द्वारा विभिन्न मुंद्दो पर चर्चा की जा रही थी | उनमे से एक मुद्दा था की क्या अपने देश के नेताओ में देश हित के किसी भी एक मुद्दे पर एक मत्तता  है |  उनमे से एक मित्र ने बोला क्यों नहीं, यदि देश पर कोई बाहरी आक्रमण हो जाये  या होने वाला हो तो सारे नेता एक स्वर में आक्रमणकारी को मुहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार रहते हैं |अभी पहले मित्र की बात खत्म हुई भी नहीं थी, कि दूसरा मित्र बोल पड़ा नहीं उनके समर्थन करने का कारण देश हित या देश का भला करना नहीं है बल्कि उनका वोट बैंक  कैसे मजबूत बनेगा इसकी मजबूरी ही उनके समर्थन या विरोध का कारण होता है | 
  अभी दूसरा मित्र अपनी बात खत्म ही कर रहा था की तीसरा मित्र तपाक से बोल पड़ा की हम में से कोई  बता सकता है कि आखिर  हमारे देश के नेतागण कभी  किसी मुद्दे पर एक मत रहे हैं या नही | तीसरे मित्र की बात खत्म होते ही चौथे मित्र ने बोला की मैं बता सकता हूँ कि अपने देश के नेतागण किस मुद्दे पर कभी एक मत हुए हैं |  चौथे मित्र ने बोला कि वह मुद्दा है अपने देश के नेताओ के तनख्वाह व भत्ता बढ़ाने का मुद्दा या यों कहे अपने फायदे का मुद्दा |बोलो तुम लोग अपने देश के नेता इस एक मुद्दे पर एक एक मत  रहते हैं की नही | जब भी संसद में यह मुद्दा किसी एक नेता के द्वारा लाया जाता है तो इसको बिना किसी बहस के अपने द्वारा स्वयंभू गठित कमेटी द्वारा दिए गए सुझावो को हरी झंडी दे दी जाती है और अगर कोई ऐसे मुद्दों का विरोध करता है तो उसका विरोध मात्र दिखावे का विरोध होता है | बताओ तुम लोग मेरी इस बात से सहमत हो की नही | सभी मित्रो ने कुछ देर तक उसकी बातों पर विचार किया और फिर एक स्वर में ही उसकी बातों का समर्थन अपने नेताओ के द्वारा फायदें के लिए किए जाने वाले मुद्दों की तरह किया|

Friday, February 22, 2008

चालाकी और पश्चाताप


चालाकी और पश्चाताप
इस संसार में कुछ व्यक्तियों को अपनी बुद्धि पर इतना गर्व होता है कि वो सामने वाले को कुछ समझते ही नहीं हैं| ऐसे ही एक व्यक्ति संतोष जी थे जिनके गुण और उनके नाम में कोई मिलान नहीं था जो यदि किसी दुकान पर चले जाते, और दुकानदार ने किसी भी समान का कितना भी उचित दाम क्यों न बोला हो लेकिन वो बिना मोलभाव के समान ही नहीं ले सकते थे | ऐसे ही बिजनेस के संबंध में दिल्ली जाना हुआ वहाँ पर दिल्ली रेलवे स्टेशन से टेम्पो पकड़कर नोएडा  किसी कंपनी में काम के वास्ते गए तथा वहाँ से काम करके फिर दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वापस लौटने के लिए टैम्पो स्टैंड से टेम्पो पकड़ने गए आदत से मजबूर होने के कारण सोचा कि चलो इधर से दिल्ली तक बिना मीटर चलवाये ही टैम्पो से चलते हैं और मुझे एक तरफ का किराया पता ही है | आते समय लगे किराये से बीस पच्चीस कम में किराया तय करके ही किसी टेम्पो से चलते हैं | टैम्पो स्टैंड पर टेम्पो वालों से बात करना शुरू किया लेकिन कोई भी डेढ़ सौ से नीचे तैयार ही नहीं हो रहा था जो कि आये हुए किराये से करीब बीस  रूपये ज्यादा था | अपने को मज़बूरी में पाकर एक टेम्पो वाले को लेकर मीटर रीडिंग के अनुसार किराए की बात करके टेम्पो पर चढे और दिल्ली के लिए चल दिए वह शायद यह निश्चय करके इनको अपने टेम्पो पर बैठाया की देखो अपनी चालाकी का परिणाम, आप समझते हो कि मैं ही चालाक हूँ अरे आप अपने कारोबार, काम काज में चतुर होंगे यह हम लोगो का कारोबार है जिसमे प्रतिदिन कितने ही व्यक्तियों को टेम्पो पर चढाकर इधर से उधर घुमाकर और उलूल-जुलूल का किराया लेकर उन लोगो को प्रसन्नता से विदा कर दिया जाता है | जैसे ही टैम्पो थोड़ी दूर आगे बढ़ी एक पेट्रोल पम्प पर टैम्पो खड़ा करके टैम्पो में तेल लेने के बाद ड्राईवर ने संतोष जी से बड़े ही सम्मानजनक लहजे में बोला साहब जरा सौ रूपए दीजिए पेट्रोल का दाम दे दूँ यह पैसा आप किराये में से काट लीजियेगा सवारी से सौ रूपए लेकर तेल का दाम पेट्रोल पम्प पर चुकता करने के बाद टैम्पो को हवा से बातें कराते हुए अपने सवारी को अपने धंधे की परेशानियों, अपने धंधे में लगे हुए व्यक्तियों तथा टैम्पो पर बैठने वाली सवारियों के व्यवहारगत अच्छाइयों तथा बुराइओं के बारे में बात करते हुए अपने सवारी को बातों में ऐसा उलझाया कि वह दिल्ली पहुँचते-पहुँचते यह भूल गए कि हमें टेम्पो वाले को किराया देते समय उसमे से सौ रूपये काटना भी है | अंत में दिल्ली स्टेशन पर पहुँच कर टेम्पो को ऐसे स्थान पर रोका कि जहाँ से बस इत्यादि इतनी तेजी से गुजर रही थी कि कोई भी व्यक्ति उस स्थान से अपना काम करके जल्दी से हट जाना चाहे यही बात संतोष जी के साथ हुई, उन्होने मीटर देखा, मीटर के अनुसार किराया एक सौ उन्न्तीस बनता था टेम्पो वाले को एक सौ तीस रुपये दिए टैम्पो वाले ने भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे पैसा लिया और नमस्कार करके टैम्पो लेकर चलता बना संतोष जी जैसे ही सड़क पार कर स्टेशन कि तरफ बढे, उनको एकाएक याद आया, अरे टैम्पो वाले को एक सौ तेल भरवाते समय दिया था उसको तो मैं किराये में काटना ही भूल गया पीछे मुड़ कर देखा तो टैम्पो वाला तो वहाँ से नदारत हो गया था अब सौ रूपये गवाने पर अफ़सोस के सिवाये कुछ भी न था संतोष जी मन ही मन सोच रहे थे कि देखो बातें कितने ऊंचे आदर्शों की कर रहा था और काम कितना घटिया कर गया कितनी सफाई से एक सौ रूपये का चूना लगा कर नौ दो ग्यारह हो गया |

Tuesday, February 19, 2008

एक पंथ दो काज

एक पंथ दो काज

रामदीन और सुरेश बाबु दोनो पड़ोसी थे | दोनों एक ही विभाग में अलग - अलग ऑफिस में काम करते थे | रामदीन अपने ऑफिस मे चपरासी पद पर कार्यरत था , तो सुरेश बाबू कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे | एक बार रामदीन गंभीर रूप से बीमार पड़ा तो उसके घर के लोगों ने ले जा कर अस्पताल मे भर्ती करना पड़ा इलाज के लिए  | कालोनी  के कई लोग अस्पताल जा कर रामदीन को देखते तथा ईश्वर  से जल्दी स्वस्थ कर देने की प्रार्थना  करते | सुरेश बाबू  पड़ोसी होने के कारण उसे देखने जाना अपना नैतिक कर्तव्य समझते थे ,किन्तु इनका पद इस कर्तव्य मे आड़े आ जाता था | उनके मन मे कहीं न कहीं ये बात अटकी हुई रहती थी की कहाँ मैं कार्यालय अधीक्षक और एक चपरासी का हाल चाल लेने अस्पताल जाऊँ | इतफाक से उनका एक मित्र दुर्घटना मे घायल होने के कारण उसे उसी अस्पताल मे जा कर भर्ती हुआ और जब इस बात का पता सुरेश बाबू को चला तो वह उसे देखने अस्पताल पहुँचे| किंतु सुरेश बाबू  के पास वार्ड नम्बर तथा बेड नम्बर का  पता न  होने के कारण वे सारे वार्डो  मे जा  जाकर अपने मित्र को ढूढने लगे इतफाक से सुरेश बाबू उसी वार्ड मे पहुँच गए जिसमे रामदीन भर्ती था |रामदीन की पत्नी की निगाह सुरेश बाबू की आँखों से टकराई तो सुरेश बाबू  न चाहते हुए भी रामदीन के बेड  के पास जा कर बैठ गये और उसके पत्नी से रामदीन का हाल चाल पूछने लगे | हाल चाल बताने के बाद रामदीन की पत्नी ने सुरेश बाबू से पूछा की कोई और भरती है क्या बाबू, जिसे आप देखने आए है | नहीं और कोई नहीं भर्ती  है,  यही रामदीन का समाचार लेने आया था | कई दिनों से रामदीन को देखने आना चाहता था किन्तु  आफिस से फुरसत ही नहीं मिल पा रहा था | रामदीन की पत्नी के आँखों में खुशी और गर्व के आसू आ गए सोचने लगी बाबू आधिकारी के पद पर होते हुए भी इनको देखने आये | वह सुरेश बाबू से भावातिरेक में  बोलने लगी बाबू ऐसे ही समय के लिए तो साथ समाज होता है आखिर कार पड़ोसी भी तो परिवार  का एक अंग ही होता है | सुरेश बाबू ने भावनाओ मे बहती हुई ये बात सुनी तो इस झूठ के लिए उनकी आत्मा उनको धिकारने लगे  किंतु स्वार्थ बुद्धि ने कहा की चलो एक पंथ दो काज हो गया | आया था मित्र को देखने इसी बहाने रामदीन को भी देख लिया, हाल-चाल ले लिया और एक सामाजिक व्यवहार भी निभा दिया  |

Saturday, February 2, 2008

नैतिकता

नैतिकता

जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकी, ट्रेन से उतरने वाले यात्री उतरने लगे ,चढ़ने वाले यात्री प्लेटफार्म पर खड़े होकर उतरने वाले यात्रियों के उतर जाने का इंतजार करने लगे | जैसे ट्रेन से उतर जाने वाले यात्री ट्रेन से नीचे उतर गए चढ़ने के लिए खड़े यात्री बोगी में जल्दी जल्दी चढ़कर सीटों पर बैठने  लगे उन्ही यात्रियों मे से एक महिला खाली  सीट देख कर बैठने के लिए आगे बढ़ी तो उस सीट के बगल मे बैठे यात्री ने अपना बैग आगे बढ़ते हुए बोला सीट खाली नही है ,कही और देख लीजिए यह देख कर यात्री के सामने बैठे एक अधेड़ से दिख रहे यात्री ने उससे कहा की लेडीज़ है बैठने दीजिए भाई | तब तक एक और महिला यात्री आई और उस सलाह देने वाले अधेड़ यात्री के बगल मे बैठने के लिए आगे बढ़ी तो उस अधेड़ यात्री ने कहा जगह खली नही है कही और देख लीजिए | यह देख कर सामने बैठे यात्री ने, अधेड़ यात्री का जुमला दोहराया लेडीज़ है बैठने दीजिए आप के बगल के तो बैठे यात्री आपना बैग ले कर उतर गए है| यह सुनकर अधेड़ यात्री ने अपने आखो की त्योरी बदल कर उतर दिया की आप को कैसे मालूम ,उन्होंने मुझसे कहा की मैं अभी आ रहा हू उतर सुनकर सामने वाला यात्री स्तब्ध हो गया और इनकी नैतिकता के बारे मे सोचने लगा |

Wednesday, January 23, 2008

दो रूप

दो रूप

रचना जब शादी के बाद पहली बार ससुराल से वापस मायकेे आई तो उसकी माँ ने  ससुराल की खैर ख़बर लेना शुरु किया  और उससे पूछा की क्यो खाना बनाने तथा बर्तन वैगेरह  धुलने में तुम्हारी दोनों ननदे साथ तो देती ही होंगी न | नही माँ वो लोग साथ क्या देंगी उन लोगो को तो अपनी पढाई तथा साज सिंगार से ही फुरसत नही रहती है | और देवेश तुझे अपने साथ ले जाने के लिए नही बोलते है क्या | वो अम्मा और बाबु जी का बहुत ख्याल रखते है वो तो मुझसे बोलते है कि देखना अम्मा बाबु जी को कोई परेशानी न हो | तो तुम उनसे क्यो नही बोलती हो की मैं आप की मेहरिया हूँ न की आप के अम्मा बाबु जी की | समय बिताता रहा जब कुछ समय के बाद रचना के भईया अविनाश जब उसके भाभी को अपने साथ लेकर कानपुर जाने की बात माँ से बोला तो उसकी माँ ने पुरा घर अपने शिर पर उठा लिया और ऊँची आवाज में  बोलने लगी देखो तो कैसा ज़माने आ गया है | अब बच्चे अपने माँ बाप को  क्या सुख देंगे वो अपने बिबियों  को अपने साथ रख कर बस सैर सपाटे करना चाहते है, मौज मस्ती मे अपने दिन गुजरना चाहते है | जब रचना ने अपनी माँ के इन बातो को सुना तो सोचने लंगी की शायद औरत का दो रूप होता है , एक माँ का दूसरा सास का, माँ के रूप मे वह अपनी बेटी को उसकी ससुराल मे किसी की दासी , चेरी या सेवक बनकर रहते हुए नही देखना चाहती है इसके बिपरीत सास के रूप मे वह हमेशा अपने बहु के ऊपर शासन करना चाहती है उसे दासी बनाकर, चेरी बनाकर तथा सेवक बनाकर रखना चाहती है |