Saturday, November 11, 2023

दिखावे का दान


दिखावे का दान
 कुछ  विभाग में अधिकारियों की अपने मातहतों के बीच ऐसी हेकड़ी होती है कि उनको  सर्व समाज में भले ही न कोई जानता हो लेकिन जब वह ट्रेन कहीं जाते हैं तो उनको अलविदा करने के लिए उनके मातहतों की पूरी फौज ही स्टेशन पर जी हजुरी व पुर्साहाली  करने के लिए उपस्थित हो जाती है | ऐसे ही विभाग के एक बड़े अधिकारी थे रमेश साहब  जिनकी हेकड़ी व शक्त मिजाजी के कारण उनके मातहत उनसे कोसो दूर रहते थे, लेकिन जब वह ट्रेन से ड्यूटी इत्यादि पर कहीं जाते तो उनको स्टेशन पर विदा करने हेतु या यों कहे की कृपा पाने हेतु उनके मातहत स्टेशन पर पहुँच कर उनकी ललो चप्पो करना व आगे पीछे घुमना शायद अपना धर्म समझते थे |
  ऐसे ही रमेश साहब का एक बार बाहर जाने हेतु प्रोग्राम बना और जैसे ही रमेश साहब स्टेशन पर पहुंचे और अपने गाड़ी से उतारे तो एक भिखारिन ने उनकी ओर भीख की आशा से हाथ फैलाया किन्तु रमेश साहब ने इस भिखारिन को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ गए | उनके मातहतों की फ़ौज वी आई पी गेट पर उनका इंतजार कर रही थी किन्तु गेट नम्बर दो से जाने वाली ट्रेन नजदीक होने के कारण उन्होंने अपनी गाड़ी को दो नम्बर गेट पर रुकवाना ऊचित समझा | जैसे ही उनके मातहतों को पता चला कि साहब दो नम्बर गेट पर आ गए हैं, मातहतों की पूरी फ़ौज गेट नम्बर दो की तरफ मुड़ गई और साहब के आगे पीछे हो ली | इसी बीच भिखारिन ने जब देखा कि साहब के आगे पीछे आदमियों की पूरी फ़ौज है तो उसने भीख की आशा से मौका देखकर साहब के सामने जैसे ही हाथ फ़ैलाने के लिए आगे बढ़ी तबतक मातहतों की फ़ौज उसको रोकने के लिए और कुछ डाट डपट करने के लिए हा हा करते हुए आगे  बढ़ी तो रमेश साहब ने उन लोगो को रोका और अपने जेब से कुछ पैसे निकला और उसके हाथ में रखते हुए आगे बढ़ गए | उन्ही मातहतों में से कुछ साहब की प्रसंसा में गुड़गान करने लगे तो उन्ही में से एक  मातहत जो  गेट नम्बर दो पर साहब को भिखारिन को अनदेखा कर आगे बढ़ाते हुए देखा था, तो वह अपने मन ही मन में बुदबुदाया की देखो साहब ने दिखावे का दान कर अपना धर्म निभाया कैसे निभाया |