Friday, August 15, 2008

अफ़सोस

इस संसार में कुछ व्यक्तियों कि आर्थिक स्थिति कितनी भी अच्छी क्यों न हों| वे कितने भी अच्छे पद और प्रतिष्ठित पद पर क्यों न कार्यरत हों वो अपने आमदनी का रोना सदैव रोते रहते हैं| ऐसे ही एक व्यक्ति थे| जिनका नाम था विमलेश, जिनको प्यार से लोग विल्लू बाबू कहा करते थे| वो कार्यरत थे सप्लाई विभाग रसद आपूर्ति विभाग में लिपिक पद पर जहाँ पर तनख्वाह के अलावा वैसे कि आमद बराबर बनी रहती थी| ऑफिस में सीट भी ऐसी मिली थी| जहाँ से अधिकतर आदमियों को गुजरना ही पड़ता था| कोई भी व्यक्ति जिस किसी भी समाज या आदमियों के संपर्क में रहता है उन्ही के विचारों से प्रभावित होता रहता हैं और उसी तरह के विचार उसके मन में चलने लगते हैं| और उसकी सारी गतिविधियां उन्ही विचारों के प्रभाव में होती रहती हैं| बिल्लू बाबू भी इससे अछूते नहीं थे| उनके ऑफिस का माहौल सुबह से लेकर शाम तक ऐसा ही था| जहाँ पर छोटे से लेकर बड़ा तक ऊपरी दस रुपयों कि जुगाड़ में लगा रहता था| बिल्लू बाबू के जीवन में भी आमदनी का श्रौत अच्छा होने के बावजूद छल कपट से बचत का जुगाड़ उनके दिमाग में सदैव ही चलता रहता था| ऐसे ही ऑफिस के बात व्यवहार में एक ऐसे आदमी से मुलाकात हुई, जिसने अपना काम करवाने के एवज में एक ऐसा प्रस्ताव दिया जो विल्लू बाबू को सोने पे सुहागा महसूस हुआ| बातों ही बातों में सहमति होने पर उन्होंने उस व्यक्ति से शाम को घर पर आकर कार्य करवाने के लिए बोला और फिर दूसरे दिन अपना आदेश ले लेवे| तय समय के अनुसार वह व्यक्ति शाम को उनके घर आया तथा अपनी काबलियत के अनुसार घर कि विद्युत् विरिंग में पता नहीं क्या उलटफेर किया कि एक कमरे में कोई भी लाईट, पंखा इत्यादि चलाने पर भी विद्युत् मीटर को जैसे सांप सूंघ गया हों वह हिलता डुलता ही नहीं था| तथा और कमरों का लोड पड़ने पर मीटर समान्य रूप से चलने लगता था| यह करिश्मा देखकर बिल्लू बाबू इतने प्रसन्न हुए कि जो आदेश उस व्यक्ति को कल देने के लिए बोल रखा था| वह आदेश तुंरत उस व्यक्ति को दिया और चाय पानी कराकर उस आदमी को विदा किया| अब तो जैसे लगता था कि बिल्लू बाबू और उनके परिवार वालों को उनके मन की सोची हुई मुराद पूरी हों गयी हों| अब तो घर के किसी भी विद्युत् उपकरण को चलाना हो उसका सम्बन्ध लाकर अक्षय श्रौत से कर देते थे, जहाँ से बिजली का जो चाहो उपयोग करो लेकिन उनित एक पैसे का भी नहीं उठेगा| इस तरह से यदि बिजली के उपकरण को एक घंटा चलाने की आवश्यकता हो तो वह उपकरण कार्य हो जाने के बाद भी उसी तरह से चलता रहता था| कार्य लेने का यह तरीका यदि बिजली बिल से छुटकारा दिलाया था| तो उपकरणों के ख़राब होने की रफ़्तार को बढाया था| अब जो मांग बिजली के बिल में जाया करता था| वह भाग अब बिजली के उपकरणों के मरम्मत करने तथा बल्ब इत्यादि की खरीददारी में खर्च होने लगा, लेकिन इसकी तरफ किसका ध्यान जा रहा था| इस तरह यदि बिजली के किसी उपकरण में कोई छोटी मोटी खराबी गयी तो पैसा बचाने के लिए उसे अपने हाथ से ही ठीक करने लगे कुछ बना कुछ नहीं बना| लेकिन काम चलता रहा| इसी तरह कार्य करते-करते इलैक्ट्रिक प्रेस में करंट (विद्युत्) आने लगा, लेकिन चूकि वह कार्य कर रहा था| तो उसको बनवाने की ही क्या जरूरत थी| परिवार के लोग उससे कपडा प्रेस करते तो बड़ा ही सतर्क होकर कपडा प्रेस करते लेकिन कहा गया है की दुष्ट आदमियों और ख़राब उपकरणों से कितना भी सतर्क होकर रहिये| लेकिन आपसे जरा सी भी चूक हुई कि वो वो आपको चपेट में लिए बिना नहीं छोडेंगे| यही घटना एक दिन उनके लड़के राजू के साथ हुई, वह एक दिन कपडे प्रेस कर रहा था| कि पता नही कैसे उसका हाथ प्रेस से छू गया और वह जब तक चिल्लाता और कोई कुछ समझ पाता और प्रेस का स्विच ऑफ करता| राजू की आवाज गायब हो चूकी थी| और वह निढाल होकर जमीन पर गिर चुका था| सारे घर में रोना पिटना पद गया, लोगों के मन में तरह-तरह के विचार रहे थे| बिल्लू बाबू की जिंदगी ही जैसे सूनी हो गयी थी| इसी राजू का जन्म कितनी मनोतियों के बाद तीन लड़कियों के बाद हुआ था| उनको महसूस होता था| कि राजू का हत्यारा काल के क्रूर नियति ने नहीं किया हैं| बल्कि उसका हत्यारा मैं स्वयं हूँ| अब उनकी जिंदगी में इस घटना पर अफ़सोस करने के अलावा कुछ शेष बचा था|