Saturday, April 12, 2008

एक स्वर

एक स्वर

 एक शाम चार मित्रों के द्वारा विभिन्न मुंद्दो पर चर्चा की जा रही थी | उनमे से एक मुद्दा था की क्या अपने देश के नेताओ में देश हित के किसी भी एक मुद्दे पर एक मत्तता  है |  उनमे से एक मित्र ने बोला क्यों नहीं, यदि देश पर कोई बाहरी आक्रमण हो जाये  या होने वाला हो तो सारे नेता एक स्वर में आक्रमणकारी को मुहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार रहते हैं |अभी पहले मित्र की बात खत्म हुई भी नहीं थी, कि दूसरा मित्र बोल पड़ा नहीं उनके समर्थन करने का कारण देश हित या देश का भला करना नहीं है बल्कि उनका वोट बैंक  कैसे मजबूत बनेगा इसकी मजबूरी ही उनके समर्थन या विरोध का कारण होता है | 
  अभी दूसरा मित्र अपनी बात खत्म ही कर रहा था की तीसरा मित्र तपाक से बोल पड़ा की हम में से कोई  बता सकता है कि आखिर  हमारे देश के नेतागण कभी  किसी मुद्दे पर एक मत रहे हैं या नही | तीसरे मित्र की बात खत्म होते ही चौथे मित्र ने बोला की मैं बता सकता हूँ कि अपने देश के नेतागण किस मुद्दे पर कभी एक मत हुए हैं |  चौथे मित्र ने बोला कि वह मुद्दा है अपने देश के नेताओ के तनख्वाह व भत्ता बढ़ाने का मुद्दा या यों कहे अपने फायदे का मुद्दा |बोलो तुम लोग अपने देश के नेता इस एक मुद्दे पर एक एक मत  रहते हैं की नही | जब भी संसद में यह मुद्दा किसी एक नेता के द्वारा लाया जाता है तो इसको बिना किसी बहस के अपने द्वारा स्वयंभू गठित कमेटी द्वारा दिए गए सुझावो को हरी झंडी दे दी जाती है और अगर कोई ऐसे मुद्दों का विरोध करता है तो उसका विरोध मात्र दिखावे का विरोध होता है | बताओ तुम लोग मेरी इस बात से सहमत हो की नही | सभी मित्रो ने कुछ देर तक उसकी बातों पर विचार किया और फिर एक स्वर में ही उसकी बातों का समर्थन अपने नेताओ के द्वारा फायदें के लिए किए जाने वाले मुद्दों की तरह किया|

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