वर्षात के मौसम में जैसे मेढक टर टर बोलने लगते है जैसे ही वर्षा शुरू होती हैं। वैसे ही देश के नेता देश में चुनाव की घोषणा होने का अनुमान होने पर ही आपने भाषणों तथा लोकोक्तियों से अपने को बेदाग तथा दूसरे को महा बैमान,चोर,और घूसखोर तथा अन्य बुरे विशेषणों से विभूषित करना शुरु कर दिया। इसके साथ ही जैसे मौसम अपने अनुकूल पाकर भिन्न-भिन्न किट पतंगों का जन्म होता हैं वैसे ही चुनाव कि आह्ट होने पर कुछ नई पार्टिओं का भी जन्म हुआ इनमे से एक ऐसी पार्टी थी जो अपने को आम जनता कि पार्टी बतानें लगीं और नाम भी कुछ ऎसा रखीं कीं लोगोँ को कुछ कुछ भ्रम भी होने लगा कि जैसे यह आम जानता कि ही पार्टी हो। कुछ समय के बाद देश की राजधानी में चुनाव का घोसणा होने वाला था, इस बात को ध्यान में रखकर नेता जी अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार जोर शोर से करने लगे। वो जनता के बीच जाते और कुछ ऐसे जनता के लिए मन लुभावन बातो को करने लगे(भले ही सरकार को उस घोसणा से कितना भी घटा हो) की जनता उनको वोट देने के लिए उद्दत सी नजर आने लगी . राजधानी में चुनाव हुआ जनता का अच्छा जनसमर्थन नेता जी के पार्टी को मिला। नेता जी के पार्टी को पूर्ण बहुमत से कुछ सीटें कम मिली नेता जी इस बात का सहारा ले कर सरकार बनाने से भागते से नजर आने लगे। किन्तु इनकी धुर विरोधी पार्टी ने इनको समर्थन देने का एलान करके इनको भागने का रास्ता बंद कर दिया. यह देख कर कि अब सरकार बनाने से भागने सूरत नहीं है, नेता जी ने कुछ ऐसी शर्तों को रखना शुरू कर दिया जिससे समर्थन देने वाली पार्टियाँ समर्थन देने से पीछे हट जावे लेकिन समर्थन देने वाली पार्टियों को पीछे हटता न देख कर मजबूरी में नेता जी को सरकार बनाना पड़ा. नेता जी को सरकार चलाने का ऐसा कोई अनुभव तो था नहीं जब उन्होने सत्ता संभाली तब उन्हें सरकार चलाने की जटिलताओं का अनुभव होने लगा। ऐसे ही उन्होने अपने को जनता का बहुत बडा सेवक साबित करने के लिए लोक अदालत लगाकर जनता की परेशानियों का समाधान करने का दिखावा किया किन्तु उसमे भी असफल होता देख कर जनता के बीच में एक सगुफा छोड़ दिया की अब जनता समस्याओं को नई योजना लाकर दूर करेंगें। इस तरह इनके सरकार का समय नए नए सगूफों साथ बीतता रहा। कभी बोल देते कि मैंने जनता के लिये विजली बिल में पचास प्रतिशत का छूट कर दिया तो कभी कहते कि मैनें लिए पानी की खपत में इतना छूट कर दिया है जिसे आज तक कोई सरकार नहीं कर सकी है। लकिन सारी घोसनाये मुहजबानी शायद इनका कागज पर कोई अस्तित्व नहीं था। कुछ दिनों के बाद जब नेता जी को यह महशूश होने लगा कि जनता बातों को समझनें लगी है तो नेता जी जनता को पलझाने लिए जनता के हित में एक नया कानून लाने का नाटक करने लगे , जिसको लाने का ऐसा तरीका अपनाने लगे कि समर्थन देने वाली पार्टियाँ भी अपना कदम पीछे खीच लें वही हुआ नेता जी चाहते थे नेता जी की सरकार गिर जावे नेता जी की सरकार गिर गई नेता जी सरकार गिराने का दोष अपने प्रतिद्वंदियों को दे रहे थे प्रतिद्वन्दी नेता जी को। नेता जी देश का करोड़ो रुपयों बेकार कर चूके थे , अब जनता को नए तरीके से बेवकूफ बनाने का रास्ता नेता जी ढूढ़ रहे थे।
Friday, September 12, 2014
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment