Monday, July 20, 2020

ईश्वरीय विधान

                                                                ईश्वरीय विधान

हिंदू धर्म या फिर कहिए सनातन धर्म की मान्यता है कि पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार ही आपका अगला जन्म विभिन्न योनियों में होता है। उसी योनि में आपको अपने पिछले जन्म के अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार फल भोगने पड़ते हैं।  जब आपका कर्म इतना अच्छा हो की ईश्वर भी आपके कर्मों में कोई बुराई न ढूंढ पाए तो आपको स्थान ईश्वर के समकक्ष मिल जाता है और ईश्वर आपको अपने साथ बैठा लेते हैं और इस भवसागर से आपका पार लग जाता है। संभव हो यह धारणा समाज में इसलिए फैलाई गई हो कि व्यक्ति जीते जी अच्छा कर्म करें जिससे समाज व देश उन्नति करें और आगे बढ़े।  सच्चाई जो कुछ भी हो किंतु इसी समाज में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिनको देखकर कभी कभी व्यक्ति का ईश्वरी विधान पर से विश्वास उठ जाता है तो कभी उसको महसूस होता है कि  ईश्वर के दरबार में देर है अंधेर नहीं है।
  ऐसे किसी भी विधानो की खिल्ली उड़ाना बाबू राम सिंह का काम था। जो अपने क्षेत्र के दबंगों में गिने जाते थे। जबरदस्ती किसी भी चीज को पाने के लिए अनाधिकार चेष्टा करना उनके प्राथमिक गुणों में से था। पता नहीं यह उनके जातीय गर्व के कारण था या फिर अनाधिकार चेस्टात्मक रूप से किसी चीज को प्राप्त करने को लेकर था। बात जो कुछ भी हो उनके इस गुण के कारण उनके हितैषी से लेकर उनके ऊपर से लेकर नीचे तक के सहयोगी कर्मचारी हमेशा परेशान रहते थे।
  बाबू राम सिंह एक सरकारी विभाग के कार्यशाला में इंचार्ज सुपरवाइजर स्तर के मुलाजिम थे, जहां पर लोहे से भिन्न भिन्न प्रकार की पार्ट पुर्जों का निर्माण किया जाता था और वहां से साइट पर उपयोग करने के लिए भेज दिया जाता था। इसके अलावे बहुत से उपकरणों/पार्ट पुर्जों का कई जगहों से निजी कल कारखानों से खरीदना पड़ता था क्योंकि यह सरकारी कार्यशाला सारे उपकरणों की पूर्ति न कर पा रही थी। इन सारी क्रियाकलापों को देखते हुए बाबू राम सिंह के मन में एक विचार आया की क्यों न मैं भी अपने किसी सगे संबंधी के नाम पर एक कारखाना खोल लूं और अपने कारखाने से मैं खुद ही विभिन्न प्रकार के उपकरणों तथा पार्ट पुर्जों को बनाकर विभाग को सप्लाई किया करूं। कहते हैं कि विचार ही किसी भी कार्य की प्रथम जननी है इसका प्रस्फुटन बाबू राम सिंह के विचारों में हो चुका था। उन्होंने जल्द ही अपने विचारों को क्रियात्मक रूप में परिवर्तित किया और कुछ ही महीनों में शीतल इंजीनियरिंग वर्क्स के नाम से कारखाना बनकर तैयार हो गया।  अब शीतल इंजीनियरिंग वर्क्स विभिन्न विभागों से निविदा के माध्यम से भिन्न भिन्न प्रकार के उपकरणों और कंपोनेंट्स का निर्माण करके विभागों को सप्लाई करना शुरू कर दिया। जब से शीतल इंजीनियरिंग वर्क्स ने अपना काम शुरू किया तब से सरकारी कारखाने के कर्मचारियों ने यह महसूस करना शुरू कर दिया की उनके भंडार से लोहे की छड़, प्लेट, चादर पता नहीं कब कहां गायब हो जाया करती थी।
  किसी भी सरकारी विभाग की एक प्रमुख विशेषता है की आप काम कुछ कम करें यह चलेगा इसके तमाम जवाब हैं किंतु कागज में जो अंकित भंडार संख्या है, वह आपके भंडार की वास्तविक संख्या के बराबर ही मिलना चाहिए। यदि यह वास्तविक संख्या से थोड़ा भी कम या ज्यादा है तो इसके लिए भंडार धारक पूर्ण रूप से जिम्मेदार है और विभागीय कार्यवाही जो की जाएगी वह रिकवरी से लेकर नौकरी से बर्खास्तगी तक की सजा है। यहां भंडार में थोड़ी बहुत कमी हो अर्थात दाल में नमक के बराबर हेरफेर हो तो कुछ इधर उधर खपत दिखा करके ठीक किया जा सकता था, किंतु यहां पर तो लगता था जैसे नमक में ही दाल बन रही थी।
  इस तरह की घटनाओं से चिंतित होकर रात में कुछ कर्मचारीयों ने दिन के अनुसार चौकीदार के अलावा खुद भी चौकीदारी करने का निर्णय लिया। लेकिन पता नहीं क्या बात हुआ दूसरे दिन रात में एक कर्मचारी मृत्यु दशा में कारखाने के पास पाया गया। लगता था उसकी मृत्यु किसी वाहन कुचल जाने के कारण से हो गई थी। आदमियों को इस घटना में दाल में कुछ काला नजर आ रहा था किंतु भयवश कहें या फिर बहुत सटीक जानकारी ना होने के कारण कोई अपना मुंह खोलना नहीं चाह रहा था। अब रात में कर्मचारियों ने अपने स्वयं के चौकीदारी करने के निर्णय को परित्याग कर सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया। निर्बल के आश्रम इस संसार में बस ना दिखाई देने वाले भगवान का ही हैं। निर्बल के साथ इस संसार में शायद ही कोई खड़ा दिखे, समाज को वैसे भी छोड़ दीजिए वह यह जानते हुए भी क्या गलत है क्या सही है उसका किसके साथ स्वार्थ सिद्धि है उसी का साथ देती है। सरकारी कामकाज में तमाम नियम कानून हैं यदि कोई थाना पुलिस भी करें तो किस आधार पर करें जब सुबह कारखान खुलते समय मेन गेट पर लगा हुआ ताला व सील टूटा हुआ न पाया जाता था तो यह सब करने का कोई आधार ही ना था। वैसे भी जब चोर घर में हो तो पकड़ना इतना आसान काम नहीं है।
  अब कर्मचारी सब कुछ भगवान भरोसे छोड़कर अपने काम में जुटे हुए दिखते थे। कर्मचारियों ने इन दिनों बाबू राम सिंह के व्यवहार में एक और बदलाव देखा कि अब वह रिवाल्वर के साथ कारखाना में आना शुरू कर दिए थे और जब कभी अपने चेंबर में बैठते तो अपने मेंज पर रिवाल्वर को निकाल कर रख दिया करते थे। इसके अलावा महीने या पन्र्दह दिन में कभी कारखाने में घूमते हुए किसी पेड़ पर कोई पक्षी दीख जाती थी तो अनायास ही उस पर रिवाल्वर से फायर कर दिया करते थे यह सब देख कर कर्मचारियों में तथा कारखाने के सुपरवाइजरों में एक भय का वातावरण व्याप्त रहता था। यह सब क्रियाएं वह किस लिए कर रहे थे यह तो बाबू राम सिंह का ही मन अच्छी तरह से जानता होगा। वैसे भी कुछ कुछ कारखाने के कर्मचारी भी उनकी क्रियाकलापों को समझ रहे थे कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं।
  कहते हैं कि भगवान के घर देर है किंतु अंधेर नहीं है। मजबूरी वश ऐसा ही विश्वास कारखाने के कर्मचारियों को भी हो गया था। ऐसे ही कारखाने में चिड़ियों के ऊपर फायर करने के दौरान बाबू राम सिंह का रिवाल्वर एक बार ऐसा फंसा कि रिवाल्वर का ट्रिगर दबाने के बावजूद भी उसमें से गोली फायर नहीं हो पा रही थी। बाबूराम सिंह से जो प्रयास हो सकता था वह उन्होंने किया की ट्रिगर दबाने से फायर हो जाए किंतु रिवाल्वर कुछ ऐसा फंसा था की फायर ना हो सका। लगता था इसी रिवाल्वर में ही बाबू राम सिंह की जान अटकी हुई थी वो तुरंत रिवाल्वर को लेकर रिवाल्वर बनाने  वाले दुकानदार के पास पहुंचे। वहां पर रिवाल्वर की नली को अपनी तरफ करके उन्होंने दुकानदार को समझाना शुरू किया कि इसका ट्रिगर दबाने पर रिवाल्वर से फायर नहीं हो पा रहा है। दुकानदार अपने हाथ में रिवाल्वर को लेकर देखना चाह रहा था किंतु उन्होंने रिवाल्वर को दुकानदार को देने के बजाय एक बार ट्रिगर दबा कर उसको दिखाना चाहा जैसे ही उन्होंने ट्रिगर दबाया रिवाल्वर से तुरंत फायर हो गया। रिवाल्वर की गोली बाबू राम सिंह का सीना चीर कर बाहर हो चुकी थी बाबूराम दुकान पर अचेत होकर गिर गए थे, उनकी धड़कन व नाड़ी गायब हो चुकी। साथ में आए हुए लोग आनन फानन में उनके मृत शरीर को लेकर अस्पताल पहुंचे डॉक्टरों ने आले से चेक करने व नाड़ी के धड़कन गायब होने पर तुमको मृत्यु घोषित कर दिया। यह खबर बिजली की गति से कारखाने में पहुंची वहां के कर्मचारी अस्पताल की ओर दौड़े किंतु कोई भी कुछ शोक का एक भी शब्द बोलने को तैयार न था। सबके मन में यही एक मौन स्वीकृति थी कि यही ईश्वरी विधान लिखा था।

यह मेरी मूल व अप्रकाशित रचना है।
गोविंद प्रसाद कुशवाहा
9044600119
 
  

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