Saturday, December 6, 2025

 किस्मत (Kishmat)


किसी के भाग्य में क्या लिखा है यह किसी को पता नहीं है। अगर किसी को पता है तो बस इसको लिखने वाले को । लेकिन इसको लिखने वाला कौन है वह इस संसार में कहां रहता है, उसके बारे में शायद ही किसी को पता हो, शायद मनुष्य की कल्पना में उसका नाम ईश्वर, भगवान व परमात्मा है ।

 डाक्टर मनोहर सारस्वत और उनकी पत्नी डाक्टर पूजा सारस्वत बिल्हौर  के जाने माने डाक्टरों में से थे। जिनकी प्रेक्टिस की चर्चा उस क्षेत्र के डाक्टरों  के बीच में उनकी कमाई से अधिक उनके मेडिकल अप्रोच (दृष्टिकोण) को लेकर रहती थी कि कैसे बिगड़े से बिगड़े केस को इतनी आसानी और सरलता से डाक्टर साहब सम्हालते (हैंडिल) थे, कि शहर का डाक्टर समुदाय इसको देखकर अचंभित रह जाया करता था। जब शहर के किसी भी डाक्टर को किसी मरीज का केस समझ में नहीं आता था तो वो रोगी को सलाह देते थे कि एक बार डाक्टर सारस्वत को दिखा लीजिये। रोगी डाक्टर साहब  के पास इस आशा से जाता था कि यहाँ पर उसको कोई न कोई समाधान मिल जायेगा और अधिकतर मामले में ऐसा ही होता था कि यहां पर जरूर ही रोगी को कोई न कोई समाधान अवश्य मिल जाता था। इस तरह शहर के साथ साथ अन्य आस पास के जिलों में भी डाक्टर दंपति की प्रसिद्ध दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही थी।

 इस तरह डाक्टर दंपति की प्रेक्टिस अच्छे से चल रही थी और समय हंसी खुशी से व्यतीत हो रहा था | इन्ही हंसी खुशी के बीच डाक्टर दंपति के परिवार में एक नए सदस्य का आगमन हुआ। इस नए सदस्य के आने से सारस्वत दंपति के परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं था। अब क्लीनिक पर जाने से पहले और क्लीनिक से आने के पश्चात डाक्टर दंपति के लिए घर पर यह नया मेहमान खिलौने के रूप में था। डाक्टर साहब को पता ही नहीं चलता था कि समय कैसे व्यतीत हो जाता है। उन लोगों ने बच्चे का नाम मनमोहन रखा था। नाम के अनुरूप बच्चा मन को मोहने वाला था । भगवान ने बच्चे को खाली समय में खूब गढ़ कर बनाया था, गौरवर्ण के साथ बच्चे की नुकली ठुड्डी के नीचे व हथेली के बीच में काले तिल का निशान, ऊँची नाक  तो चौड़ा माथा, माथे पर त्रिनेत्र के भांति तिलक जैसा निशान और बड़े बड़े कान थे। देखने से ही लगता था जैसे बच्चे में शुरू से ही प्रतिभा के दर्शन हो रहे हैं। जब दोनों डाक्टर अर्थात सारस्वत दम्पति क्लीनिक पर चले जाते थे तो उस समय घर पर बच्चे का देखभाल दाई किया करती थी।

इस तरह बच्चा मनमोहन धीमे - धीमे एक दिन से बड़ा होकर एक महीने और एक महीने से दो महिने, दो से तीन महीने की तरफ बढ़ता जा रहा था। दाई का नाम रामदेई था | वह बच्चे का देखभाल ऐसे करती थी जैसे वह अपने बच्चे का देखभाल कर रही हो | रामदेई बच्चे के ही नीद सोती थी और उसके ही नीद जगती थी | दिन में समय निकाल कर डाक्टर दंपत्ति भी घर पर आकर बच्चे की देखभाल कर लिया करते थे तथा अपना मन बहलाव भी कर लिया करते थे | इसी तरह समय बितते हुए बच्चा करीब करीब एक साल का हो गया | अब मनमोहन बकैंया होकर चलने लगा था कभी कभी खड़ा होकर भी कुछ दूर चल लेता था, अब घर परिवार तथा आने जाने वाले मेहमानों व लोगों के लिए एक मनबहलाव का एक बहाना हो गया था। कब बच्चा घर के अन्दर से बाहर निकल आए और  कभी बकैंया तो कभी खड़े होकर गिरते पड़ते घर के अन्दर बच्चा चला जाता था, किसी को पता ही नही चलता था। रामदेई बार बार शिकायती लहजे से मनमोहन से शिकायत करती लल्ला क्यों मेरे जी को सन्न किए देते हो लल्ला क्षण भर में अन्दर तो क्षण भर में कब बाहर चले जाते हो पता ही नही चलता और जब मै तुझे देखती नही हूं तो सन्न रह जाया करती हूं, कि मेरा सोना मोना प्यारा सा लल्ला कहां चला गया। रामदेई बिल्कुल मनमोहन से ऐसे बात करती जैसे एक मां अपने बच्चे से बातें करके मुदित होती है और मन ही मन खुश होती है और परेशान होने का नाटक कर बच्चे के साथ खेलती है। इस तरह हँसी खुशी पूर्वक समय व्यतीत हो रहा था। बच्चे के अठखेलियों के बीच समय ऐसे बीत रहा था जैसे समय को पंख लग गया हो।

  इसी तरह एक दिन डाक्टर सारस्वत दंपत्ति जैसे ही अपने क्लीनिक के लिए निकलें उसके बाद कई बार लल्ला घर से बाहर निकला और पुनः रामदेइ के द्वारा लल्ला को  घर में लाया जाता किन्तु जैसे ही रामदेई किसी काम में ब्यस्त होती लल्ला पुनः बाहर चला जाता था। यह क्रम चल रहा था, रामदेई निश्चिंत थी कि लल्ला बाहर बरामदे में ही खेल रहा होगा, और मन में विचार किया कि चलो घर के एक-आध जरूरी काम हैं चलो निपटाकर लल्ला को देख लेते हैं किंतु घर के कामों से फुरसत मिलने पर घर के बाहर खेल रहे लल्ला को लेने आई तो लल्ला वहाँ कही दिख ही नहीं रहा था | रामदेई लल्ला को ढूढ़ने के लिए इधर से उधर पागलों की तरह दौड़ रही थी, लल्ला - लल्ला चिल्ला रही थी | पहले तो वह बंगले के चारों तरफ लॉन में छोटे छोटे पौधों के बीच ढूढ़ती रही किन्तु बच्चे को न पाकर वह सड़क पर लल्ला - लल्ला बोल का चिल्लाती हुई सनकी के सामान इधर से उधर ढूढ़ती तो कभी  किसी के बंगले में झांकती  किन्तु वहाँ पर लल्ला हो तब न मिले लगता था | आस पड़ोस, अगल - बगल  अन्य चलते हुये राहगीरों को जिसको भी माजरा समझ में आता वो यही रामदेई को सलाह देते अरे लल्ला यही कही होगा ठीक से देखो । किन्तु लल्ला वहाँ हो तब न मिले, रामदेई अपने को कोसती इधर से उधर पागलों के भाति दौड़ती । मै कैसे इतना निश्चिंत होकर घर के काम में मगन होगई सारी गलती मेरी ही है| मालिक आयेंगे तो उन्हे क्या जवाब दूँगी | इसी उधेड़ बून में रामदेई भटक रही थी कि डॉ सारस्वत दंपति का आगमन हुआ बंगले पर भीड़ और रामदेई को बदहवास देखकर डॉ दंपति को मजरा समझने में देर न लगा | 

  डॉ दंपति भी बदहवास इधर उधर अपने मनमोहन को ढूढते रहे किन्तु मनमोहन वहाँ हो तब न मिले, अन्त में हारकर सर पर हाथ रखकर बैठ गए, और जो भी हित मित्र थे उनके पास फोन कर इस दुख भरी खबर को बताया | थोड़ी देर मे यह खबर आँधी के भाँति पूरे शहर में फैल गई | सारा शहर शारस्वत दंपति के बँगले की तरफ दौड़ा हुआ चला आ रहा था | शहर वासियों  के लिए यह कौतूहल का विषय था कि इतने सज्जन, परोपकारी , धर्मार्थी  व्यक्ति के साथ किसी पिचाश ने ऐसा निकृष्ट कार्य कैसे किया जो ही सुनता अपने मन से दो चार शापित वचन उस नरपिचाश के लिए अवश्य निकाल ही देता था | 

  खैर जो होना था हो चुका डॉ दंपति भी हिन्दू विधान के भांति  इसे अपने पूर्व कर्मों का दोष मानकर मन को समझने मे लगे थे कि यह मेरे पूर्व में किए गए किसी गलत काम का प्रतिफल है | कुछ हित मित्रों ने सलाह दिया कि कम से कम थाने पर एक एफआईआर तो कर ही देना चाहिए | थाने पर जैसे ही थानेदार को सूचना मिली किसी ने डॉ सारस्वत के बेटे को उनके घर से उठा लिया है  वो सारा काम छोड़कर डाक्टर साहब के बँगले पर पहुँचे | थानेदार साहब भी यदि कभी डाक्टर साहब के क्लीनिक पर पहुँचते थे किसी मरीज को दिखाने के लिए तो डाक्टर साहब भी बिना बारी के ही उनको बुला लिया करते थे | इतनी बड़ी घटना के इस क्षेत्र मे होना थाने के लिए बदनामी वाली बात थी तो थानेदार साहब के  लिए  एक दाग के समान था | 

  थानेदार भी डाक्टर दंपति  व रामदेई (दाई) से  मिलकर जो भी जानकारी प्राप्त कर सकते थे वो सारी जानकारी को लेकर अपने मुखबीरों को फैला दिये कि कहीं से कुछ सुराग का पता चले | किन्तु कुछ पता नहीं चल पा रहा था |

  एक दिन सुबह उठने पर डाक्टर दंपति को हाते के भीतर एक लिफाफा दिखा |  डाक्टर दंपति ने  लिफाफा खोल कर देखा तो पाया कि उनके दिल  के टुकड़े मनमोहन के फिरौती के सम्बन्ध मे पत्र था | इस पत्र में हिदायत दिया गया था कि पुलिस को बिना सूचित किए निश्चित धनराशि लेकर निश्चित स्थान पर पहुँचे और अपने मनमोहन को ले जावे | किन्तु पढे लिखे सिद्धांत प्रिय व्यक्तियों के पास इतना अकल ही कहाँ होता है कि कुछ ले देकर अपना काम बना लें | डाक्टर साहब ने तुरंत पुलिस से संपर्क किया फिरौती के शर्तों के बारे में अवगत कराया | पुलिस ने अपहरण कर्ताओं को पकड़ने की योजना बनाने हेतु जाल बिछाया और उसके अनुसार कार्य करने लगी |

   अपहरणकर्ताओं के ग्रूप ने भी अपना टोह व सुराग लगाना शुरू कर रखा था  कि देखें डाक्टर साहब क्या कर रहे हैं। पता नहीं उनकी खुप्फियागिरी किस स्तर की थी कि उनको पुलिस की गतिविधियों के पल पल की जानकारी हो रही थी, उन लोगों को पता चला कि पुलिस उन लोगों को पकड़ने की तैयारी कर रही है | इस बात को लेकर अपहरणकर्ताओं मे दो गुट हो गये थे | एक गुट इस बात के लिए तैयार था कि यदि पुलिस हम लोगों को पकड़ने का जाल फैलाती है तो बच्चे कि जीवन लीला समाप्त कर देंगे, तो दूसरा समूह फिरौती का पुनः एक प्रयास करना चाहिए के बारे में विचार कर रहा था और फिर भी यदि डाक्टर साहब फिरौती देने बारे में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाते हैं तो बच्चे को कहीं सुरक्षित जगह पर रखकर डाक्टर साहब को सूचित कर दिया जाय आखिरकार हम लोगों के भी कुछ वसूल होने चाहिए जिस व्यक्ति ने इस समाज कि सेवा में अपनी जिन्दगी लगा दी हो पैसे के लिये उसके सपनों कि बगिया उजाड़ दिया जाये ऐसा नहीं होना चाहिए | जबकि डाकू धर्मसिंह का मानना था कि इस तरह सहिद्रयता से अपना काम करेंगे तो हमारी बातों और माँगो पर कोई विचार ही क्यों करेगा | इस उधेड़बुन में एक एक दिन बीतते हुए एक हफ्ते का समय बीत गया। इस तरह समय बीतता देख अपहरणकर्ताओं के सरदार डाकू धर्मसिंह का धैर्य जवाब देता जा रहा था | यह देख डाकू धर्मसिंह ने अपने साथियों से विचार व्यक्त किया कि यदि डाक्टर साहब कल तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाते हैं तो बच्चे कि जीवन लीला को समाप्त कर देना है, यदि ऐसा हम लोग नहीं करेंगे तो समाज में हमे कोई गंभीरता से नहीं लेगा और हमारे धन्धे पर विराम सा लग जाएगा। उधर जब से मनमोहन को उठा कर डाकू धर्म सिंह का गिरोह लेकर आया था शुरु में तो मनमोहन डाकुओं से अनजान मनाता था और शायद अपने पालक और मां बाप को ढूढता रहता था, किन्तु समय के साथ वह भी डाकुओं से अनजानपन भूलकर अब उनको ही अपना पालनकर्ता समझने लगा था, और उनको जब भी देखता तो उनके षडयंत्रों से अनजान उनको देखकर मुस्करा देता। यह मनमोहक मुस्कराहट डाकूओं का भी मन मोह लेता था। इसी मनमोहक मुस्कराहट और डाक्टर साहब का आम जनता व मरीजों के साथ सदब्यवहार ने डाकुओं के एक गुट को अभिभूत कर रखा था | इस गुट के मुखिया कर्म सिंह थे। धर्म सिंह के सोच के विरुद्ध कर्म सिंह का गुट  बच्चे को लेकर एक अलग योजना पर कार्य कर रहा था। धर्म सिंह ने जब डाकुओं की एक बैठक में यह ऐलान किया कि आज डाक्टर दंपति को अन्तिम चेतावानी दिया जा रहा है यदि इन्होंने मेरी बातों को अनदेखा किया और पुलिस को सूचित किया  तो आज का दिन बच्चे का आखिरी दिन होगा। यह बात सुनकर कर्म सिंह का गुट चौकन्ना हो गया था। 

  इधर डाक्टर साहब बंगले पर अन्तिम चेतावानी दिया गया उधर पढ़े लिखे सिद्धांत प्रिय व्यक्तियों के भांति डाक्टर साहब ने पुलिस को सूचित किया कि अपहरणकर्ताओं के तरफ से फिरौती के बारे में पुनः संदेश भिजवाया गया है । उधर जैसे ही डाकू धर्म सिंह को पता चला डाक्टर साहब ने पुलिस को सूचित कर दिया है, धर्म सिंह आगबबूला होकर अपने छावनी की तरफ बढ़ा। किन्तु धर्म सिंह के स्वभाव से परिचित कर्म सिंह के गुट लोगों, बच्चे के साथ छावनी से कहीं गायब हो गये थे | 

   इधर जब धर्म सिंह ने देखा कि कर्म सिंह और उसके साथी बच्चे के साथ कहीं गायब है तो उसे मामला समझने में कुछ भी समय नहीं लगा और वह समझ गया कि कर्म सिंह अपना काम कर गया। धर्म सिंह अपना हाथ माल रहा था और सोच रहा था कि यदि साथी ऐसे ही धोखा देते रहे तो समाज के लोग उसकी घुड़कियों को बंदर घुड़कियां ही समझेंगे। कोई उसकी बात को गंभीरता से नहीं लेगा। किन्तु अब हाथ मलने के अलावे उसके पास कुछ भी नहीं था । वह किनारे हक्का बक्का एक पत्थर पर बैठकर  सोच रहा था की कर्म सिंह ने यह क्या कर दिया। कुछ समझ में ना आता देखकर वह अपने दो-चार साथियों को निर्देशित किया कि पता करो कर्म सिंह कहां गायब हो गया। 

   इधर कर्म सिंह ने धर्म सिंह के बारे में टोह सुराग लेने का प्रयास किया किंतु धर्म सिंह को कर्म सिंह के बारे में कुछ पता ना चला कि वह कहां छावनी से चला गया । धर्म सिंह ने भी कर्म सिंह के बारे में बहुत सुराग लेने का प्रयास किया किंतु कर्म सिंह का कुछ पता ना चला।

  समय बीतता रहा दोनों एक दूसरे के बारे में सुराग लेने का प्रयास करते रहे किंतु किसी को भी किसी के बारे में पता न चल रहा था डॉक्टर साहब भी कभी प्रशासन के सहारे तो कभी अपने ही कुछ शुभचिंतकों को लेकर मनमोहन का खोज खबर देने के प्रयास करते थे किंतु कुछ पता ना चल पाता था। समय भी एक अजब पहेली है जो समय के साथ सब कुछ भूलना सिखा देती है। डॉक्टर साहब भी सब कुछ भूल कर अब अपनी प्रैक्टिस के साथ समाज में सेवाभावी हो गए थे अब वह अपनी क्लीनिक पर  तीन से चार घंटे ही बैठते थे | शेष समय किसी धमार्थालय व मंदिर पर बैठकर मरीज को देखते थे। यह कार्य एक तरह से वे प्रायश्चित भाव से करते थे कि शायद उनके द्वारा इस जन्म में या पूर्व जन्म में जाने या अनजाने में किसी का अहित मेरे द्वारा हो गया है जिसके दण्डस्वरूप हमें यह सजा मिला है शायद इस तरह निःश्वार्थ समाज सेवा करने से किए गए अनजाने में किए गये पापो से मुक्ति मिल सके। इसके अलावे डॉक्टर सारस्वत दंपति घूम-घूम कर कैंप लगाते थे, गरीबों की दवा दारू से सेवा करते जो भी समाज के लिए अच्छा हो सकता था वह कार्य करने का प्रयास करते। इस तरह समय बीतता रहा ना तो कर्म  सिंह का पता चल पा रहा था ना तो धर्म सिंह का पता चल पा रहा था, ना तो मनमोहन का पता चल पा रहा था लगता था | 

   20 से 25 साल गुजरे होंगे की डॉक्टर सारस्वत को कुछ सेवाभावी कैम्प लगाने के दौरान यह पता चला कि बिल्लौर कस्बे से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक नवयुवक डॉक्टर भी समय समय पर सेवाभावी कैंप चलाते हैं और उस डॉक्टर की प्रसिद्ध इस रूप में भी है कि वह जिस किसी का भी नब्ज पकड़ लेते हैं या यूं कहें की देख लेते हैं लोग समझते हैं कि ईश्वर ने हमें देख लिया है, दया निधान ने हमें देखा है अब हमारे रोग कुछ ना कुछ निदान अवश्य होकर रहेगा । डॉक्टर सरस्वत दंपति ने जब से उस डाक्टर के बारे में सुना तो उन लोगों ने उस डाक्टर से मिलने का निश्चय किया किंतु समयभाव के कारण या यों कहे कोई संयोग न बन पाने के कारण मुलाकात नही हो पा रही थी। 

  समय का एक चक्र है और शायद सब कुछ पहले से ही निश्चित है कि कब क्या होना है शायद यह ईश्वर के द्वारा निर्धारित है | सब कुछ अपने गति से चल रहा था एका एक देश में एक महामारी का आक्रमण हुआ जो संक्रमण से फैल रहा था जिसमें कोई एक दूसरे के पास भी न जाना चाह रहा था उसे स्थिति में भी डॉक्टर सारस्वत दंपति और व वह नवयुवक डॉक्टर सेवा भाव में लगे हुए थे । सरकार को भी सेवा भावी डॉक्टरों की जरूरत थी एक से एक डॉक्टर नर्स कम पर से छुट्टी ले रहे थे जबरदस्ती किसी को बुलाना पड़ता था दंड का भय दिखाना पड़ता था तब लोग काम पर आते थे। 

  सरकार ने  सेवा सुश्रुशा के भाव से सेवाभावी डाक्टरों को आवाहन किया कि आप आईए बड़े बड़े अस्पतालों में अपनी सेवा दीजिए लोगों का जान बचाइए। अस्पतालों में 24 घंटे डॉक्टरों की आवश्यकता है जो भी सेवाभावी अपने को समझते हैं वह आये और मरीज की सेवा करें। जैसे ही सारस्वत दंपति ने यह बात सुना वह तुरंत ही बिल्हौर के मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवा देने पहुंच गए। बिल्हौर मेडिकल कॉलेज में सारस्वत दंपति को यह पता चला कि कोई डॉ मनमोहन हैं जिनको दिखाने के लिए मरीजों की कतारें लगी रहती हैं। मरीज सोचते थे कि यदि डॉक्टर मनमोहन एक बार मुझे देख लें तो मै अवश्य ही ठीक हो जाऊंगा। सारस्वत दंपति भी उनसे मिलने की इच्छा लेकर उनसे मिलने उनके कक्ष में पहुंचे तो देखते हैं कि डाक्टर मनमोहन कक्ष के बाहर मरीजों का एक हुजूम सा लगा हुआ था। उत्सुकतावस उन्होंने डाक्टर साहब के कक्ष में झांका तो पाया कि एक बहुत ही साधारण सा कपड़ा पहने युवक डॉक्टर जिसके मुख पर तेज, कार्य में चपलता व तल्लीनता के साथ मरीजों को देख रहा है तथा उसके बगल में सन्यासी के रूप में वृद्ध व्यक्ति मरीजों को क्रम से दिखाने व मरीजों को सम्हालने में लगा है। मरीजों को एक दूसरे से दूर तथा मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिससे कि मरीजों को संक्रमण से बचाया जा सके। डॉक्टर सारस्वत दंपति को जैसे लगा कि मेरा मनमोहन होता तो वह भी इतना ही बड़ा होता और इतना ही खूबसूरत होता फिर वो सोचने लगे पता नहीं मेरा मनमोहन किस दशा में कहां होगा । इसी उधेड़बुन में डाक्टर साहब की तल्लीनता व व्यस्तता को देखते हुए डाक्टर दंपति किसी और दिन मिलने का विचार कर अपने चैम्बर में लौट आए। 

  समय बीतता रहा डाक्टर दंपति प्रतिदिन के भांति मरीजों को देखते और मरीजों की सेवा सुश्रुषा करते और अपने आवास पर चले जाते। यह क्रम चल रहा था कि इसी क्रम में एक वृद्ध मरीज जिसका इलाज कई दिनों से डाक्टर सारस्वत कर रहे थे, उन्होंने देखा कि जो अच्छा से अच्छा इलाज वो कर सकते  थे ,  उन्होंने वह किया लेकिन मरीज की हालात में कोई सुधार न दिखाई दे रहा था। डॉक्टर साहब ने मरीज को सलाह दिया की आप डॉ मनमोहन को एक बार दिखा लें, मैं उनके पास आप को रेफर किये देता हूं | बृद्ध मरीज  जैसे ही डॉक्टर मनमोहन के चेंबर में पहुंचा देखा है कि वहां बहुत ही भीड़ लगी हुई है वह वही रेफर लेटर लेकर अपनी पारी का इंतजार करने लगा जैसे ही थोड़ी भीड़ खाली हुई एक या दो 

मरीज रहे होंगे वह अपनी पारी के अनुसार डॉक्टर साहब के पास पहुंचा तो देखा कि डॉक्टर साहब को दिखाने में जो व्यक्ति सहायता कर रहा है उसका हुलिया कुछ-कुछ कर्म सिंह से मिल रहा है | उसने आवाज देकर बोला कर्म सिंह, मैं धर्म सिंह आज बीमारी के कारण यहां इलाज कराने आया हूं और इस बहाने आप से मुलाकात हुई मैं अपने को धन्य समझता हूं । आप डाक्टर साहब को मुझे दिखा देवें हो सकता है डाक्टर साहब के जस की वजह से ही ठीक होना लिखा हो, तो मैं ठीक हो जाऊं। इधर डाक्टर मनमोहन मरीज को देख रहे थे उधर उनके चैम्बर के सामने से सारस्वत दंपति गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि डाक्टर मनमोहन के पास एक या दो मरीज ही हैं तो उन्होंने सोचा चलो आज डाक्टर साहब से मिल लेते हैं। जैसे ही डाक्टर सारस्वत दंपति डाक्टर मनमोहन के चैम्बर में दाखिल हुये , कर्म सिंह ने उनको देखते ही पहचान लिया  कि ये डाक्टर सारस्वत हैं किन्तु अभी कुछ बोलते कि डाक्टर सारस्वत अपना हाथ डाक्टर मनमोहन की ओर बढ़ाते हुए अपना परिचय देने लगे । डाक्टर मनमोहन तुरन्त अपनी कुर्सी पर से खड़े हो गये और उनको बैठने का आग्रह करने लगे । किन्तु डाक्टर साहब औपचारिकता निभाते हुये  बोले  कि बहुत दिनों से आप से मिलने की इच्छा थी किन्तु जब भी आता था तो मरीजों के भीड़ के कारण लौट कर चला जाता था, किन्तु आज भीड़ नही था सोचा आज मिलता चलूँ  सो आज आप से मिलने चला आया।आज एक मरीज को रेफर भी किया हूं आप के पास। 

  जैसे ही डाक्टर साहब ने अपनी बात खत्म किया कर्म सिंह ने डाक्टर मनमोहन से बोला बाबू (कर्म सिंह डाक्टर मनमोहन को बाबू ही बोल कर बुलाते थे )  डाक्टर साहब का पैर छू कर प्रणाम करिए ये आप के माता पिता है। आप मुझसे बार बार पूछते थे न कि मेरे माता पिता कहां रहते हैं मै इसका कोई उत्तर न दे पाता था। डाक्टर साहब आप भी अपने बेटे के नुकली ठुड्डी के नीचे व हथेली के बीच में काले तिल का निशान व माथे पर त्रिनेत्र के भांति तिलक जैसा निशान को देखिए यही आप के मनमोहन हैं। जो आप के सामने डाक्टर मनमोहन के रूप में हैं। डाक्टर सारस्वत दंपति ने एक नजर से देखा तो अतीत और वर्तमान के चेहरे से  पहचानना तो मुश्किल था किन्तु कल्पना से उन्होंने समझा की मेरा मनमोहन ऐसा ही होता, जैसे ही उन्होने ठुड्डी के नीचे व हथेली के बीच में काले तिल का निशान व माथे पर त्रिनेत्र के भांति तिलक जैसा निशान बड़े बड़े कानो को देखा उनको पूरा विश्वास हो गया की यही मेरा मनमोहन है | डाक्टर मनमोहन जैसे ही अपने माता-पिता का पैर छूने आगे बढ़े सारस्वत दंपति ने उनको गले से लगा लिया | तीनों के आंखो से आशुओं की ऐसी धार निकली की सभी का कंधा भीग गया लगता था सालों का सूखा आज खत्म हो गया था | उधर उन तीनों लोग प्रेमालाप के मिलन के आँसू निकल रहे थे तो इधर धर्म सिंह के अपने किए गए कर्मों के पछतावे के आँसू निकल रहे थे तो उधर कर्म सिंह के संतोष आँसू निकल रहे थे | जैसे ही डाक्टर दंपत्ति थोड़ा सैयत हुये उन्होने देखा की वृद्ध मरीज और डाक्टर मनमोहन के साथ साये के रूप में साथ रहने वाले बाबा के भी आंखों से आसु निकल रहे है | डाक्टर दंपत्ति ने उनको शान्त कराते हुये सारा माजरा समझाने की शुरुआत की वैसे  ही की मरीज के रूप में धर्म सिंह डाक्टर दंपत्ति के पैर पर गिर पड़ा  और कहने लगा  इन सब क्रियाओं का गुनहगार आप के सामने है इसे सजा दीजिये या माफ़ कर दीजिए | आप के सामने वो महात्मा ( कर्म सिंह ) भी खड़े हैं | जिनके कारण दुनिया को डाक्टर साहब के  हाथों के जस का लाभ मिल पा रहा है |  पता नहीं कितना कष्ट सहकर इन्होने कैसे  मनमोहन को पढ़ाया लिखाया होगा डाक्टर मनमोहन के रूप में संसार को अनमोल रत्न दिया | धर्म सिंह ने अतीत के सारे घटनाक्रमो को लगभग सिलसलेवार वर्णन किया और   डाक्टर सारस्वत के पैरो पर गिर कर रोने लगा | डाक्टर सारस्वत को लगता था जैसे एक एक घटना क्रम उनकी  आंखों के सामने घटित हो रहा है। डॉक्टर सारस्वत कुछ बोलते इसके पहले ही धर्म सिंह बोल पड़ा साहब अब मुझे माफी दीजिए, एक व्यक्ति की इससे भी बुरी स्थिति क्या हो सकती है जो जिस व्यक्ति को मारना चाह रहा हो उसी से अपना निदान चाह रहा हो। साहब भगवान ने इस बहाने से हमे और साथ साथ यह तरह का कुर्कृत करने वाले को यह संदेश देना चाह रहा है कि इस तरह का कुर्कृत करना केवल संसार के ही नही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।  सारस्वत दंपत्ति को अब लग रहा था कि सारा कुछ बिगड़ जाने के बावजूद भी हम लोगों के द्वारा भगवान को दोष देने के बजाय संसार के सेवा भाव मे लगे रहने का ही यह सुखद परिणाम है | अब माता-पिता और बेटे को त्रिदेव के नाम से समाज जनता है अब पूरे भारत में  निराश हुये लोग बिल्हौर जैसे छोटे जगह मे इलाज के लिए आते और तीनों मे से किसी एक डाक्टर से मिल लेते हैं तो सोचते हैं कि अब पृथ्वी के ईश्वर ने उन्हे देख लिया है अब वह अवश्य ही ठीक हो जाएंगे |


यह मूल व अप्रकाशित रचना है|

गोविन्द प्रसाद कुशवाहा 

लखनऊ 226028  

मो. नं. -9044600119  

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