Saturday, December 6, 2008
विचार prawah २१ disambar
यह संसार भी एक अदभुत जगह है जहा लोग अपने नित नए - नए विचार देते रहते हैं। चाहे इसका महत्व आम जनता के लिए रखता हो या नही या फिर इससे आम जनता को फायदा हो या नही ऐसे ही विचार तमाम साधुसंतो के द्वारा मंच पर बैठ कर अपने शिष्यों और चेलों को दिया जाता है की यह संसार सब मोह माया है इससे मुक्ति पाने का उपाय हमें करना चाहिए और मुक्ति पाने का उपाय बताया जाता है सारी मोह माया का त्यागा चाहिए, मोह माया के त्याग का मतलब बताया जाता है की सारा धन, दौलत, घर परिवार छोंड कर ईश्वर की भक्ति की जावे इससे ईश्वर प्रसन होंगे और आप को इस संसार से मुक्ति देंगे और स्वर्ग में अपने पास स्थान देंगे और भी ब्यक्ति तमाम तरह के तर्क दिए करते तो क्या इसका मतलब यह हुआ की इश्वर यह देखते रहते है कि अमुख आदमी के पास ज्यादा धन दौलत है उसको दर्शन नही देना है और अमुख आदमी के पास धन दौलत नही है उसको ही दर्शन देना है उसको ही मुक्ति देना है। लेकिन देखने में यह मिलता है कि जिसके पास धन दौलत नही है उसको भी ईश्वर के दर्शन नही होते हैं चाहे वह कितना भी ईश्वर के पूजा पाठ में लीन हो बताने वाले संत यह क्यों नही बताते है कि जो यह फूलों में सुगंध दिख रहा है,सूरज का प्रकाश दिख रहा है, चंद्रमा की शीतल चादनी दिख रही है, नदी, झरने, समुद्र,अच्छे विचार और अच्छे काम में लगे सारे लोगों के रूप में ईश्वर हमें दर्शन दे रहा है और हमें प्रेरित कर रहा है कि मै तुमको अपना प्रतिरूप बनाकर ईस संसार में भेजा हूँ तुम अच्छे अच्छे काम करो इससे ही तुम्हारी मुक्ति है इसी में तुम्हारी भलाई है इसी में तुम्हारा कल्याण है इसके अलावे इसी में इस संसार का कल्याण है। इन बातों को बताने के बदले जो ब्यक्ति शीर्ष पर बैठें है जो ख़ुद को ज्ञानी समझते हैं वो ख़ुद ही इस संसार के लोगों के बीच ग़लत उपदेस देते हैं, अपने शिष्यों के बीच ग़लत ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं जो ब्यक्ति ग़लत ज्ञान का प्रकाश फैलता ग़लत उपदेशों को अपने शिष्यों के बीच देता हो वह क्या इस संसार का भला कर सकता है लेकिन इस संसार में उस ब्यक्ति की बाते ज्यादा प्रभावी हैं ज्यादा सुनी जाती हैं ज्यादा मानी जाती हैं जो मंच से बैठ कर टीवी पर ज्यादा से ज्यादा उपदेश दे सके ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच अपनी बातो को पहुंचा। क्या अपने दायित्वों से भागना इस संसार से मुक्ति पाना है यदि यह संसार से मुक्ति पाना है तो ऐसी विचार धारा को उखांड फेकना चाहिए। इस संसार में अच्छा से अच्छा काम और बुरा बुरा काम पैसे के बिना संपन्न नही किया जा सकता है। अगर यह बात इतनी ही सत्य है की मोह माया के त्याग से ईश्वर की प्राप्ति होतीहै तो इसे उदाहरण सहित इस संसार के सामने रखना चाहिए।इन ज्ञानी ब्यक्तियों के द्वारा जीन मध्यमो के द्वारा उपदेश दिया जा रहा वह भी किसी संसारी ब्यक्तियों के द्वारा ही बनाया गया है। न की अपने जिम्मदारी से भागे ब्यक्ति के द्वारा।उन उपदेशो से क्या फ़ायदा जो इस समाज का भला न कर पाए , जो पलायनवाद को सिखाये। ऐसे ज्ञानी ब्यक्तियों के चक्कर में पराने के बयाजे ब्यक्ति यदि इन्सान,दिन दुखिओं की सेवा में लगा रहे तो इश्वर को जल्द से जल्द प्राप्त कर सकता है अपेछा कृत की अपनी जिम्मेदारियों से भाग कर,जिम्मदारी से भागना कायरता के अलावे और कुछ भी नही है
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